वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday 22 October 2011

सीरत




ज़रा-सा पाँव क्या फ़िसला हमारा
उठने को बेचैन तेरी उंगली मचल गई

देखा झाँक खुद के गिरेबां में कभी
कहाँ-कहाँ, कब-कब तेरी नीयत फ़िसल गई

औरों पे फ़िकरे कसने से पहले तू देख तो ले
दोगली सीरत तेरीकर तुझे कैसे ज़लील गई

अब भरोसा करना गुनाह है ये जान ले
भलाई खुद की जां पे बन मुश्किल गई 
चले थे किसी मासूम को बचाने मगर
नेकी से अपनी ही उंगलि झुलस गई 

दगाबाज़ फ़रिश्ता बन फिरते  यहाँ
अपनी नादानी; हो जी का जंजाल गई 

सदियों से नाशुक्रे, ज़ालिम हैं लोग यहाँ
मीरा को ज़हर ईसा को दी सलीब गई !


16 comments:

  1. very nice really touched my heart

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  2. बेहतरीन कविता।

    सादर

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  3. बढिया प्रसतुति .. सही है !!

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  4. मर्मस्पर्शी भाव , सुंदर कविता ।

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  5. Sushila ji aapne apne anubhav ko bakhoobi shabdon mein likha hai.. ye anubhav hi hame insaan banate hain..

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  6. bhaut khubsurat... happy diwali....

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  7. आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  8. खूबसूरत प्रस्तुति है आपकी.
    सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको.
    दीपावली के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा,सुशीला जी.

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  9. पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । दीपावली की शुभकामनाएं । धन्यवाद ।

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  10. आपको सपरिवार दीप पर्व की सादर बधाईयां....

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  11. खूबसूरत प्रस्तुति

    आपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें….!

    संजय भास्कर
    आदत....मुस्कुराने की
    पर आपका स्वागत है
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  12. दगाबाज़ फ़रिश्ता बन फिरते यहाँ
    अपनी नादानी; हो जी का जंजाल गई

    Bahut Sunder....

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  13. मीरा को ज़हर, ईसा को दी सलीब गई !...People are sleeping here...One who tries to awake them, Crowd kills those Human..Be it Isha or else...

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  14. सदियों से नाशुक्रे, ज़ालिम हैं लोग यहाँ
    मीरा को ज़हर, ईसा को दी सलीब गई !
    बहुत ही भावपूर्ण कविता..जिंदगी भी अच्छी लगी.

    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है.
    www.belovedlife-santosh.blogspot.com (हिंदी कवितायेँ)

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  15. ज़रा-सा पाँव क्या फ़िसला हमारा
    उठने को बेचैन तेरी उंगली मचल गई.... बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  16. ज़रा-सा पाँव क्या फ़िसला हमारा
    उठने को बेचैन तेरी उंगली मचल गई
    गजब का शेर , मुबारक हो ........

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