वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Tuesday, 25 December 2012

बदलनी होगी अब तस्वीर



युवा शक्‍ति को नमन! दामिनी/निर्भया को सलाम और उस बच्ची की सलामती की दुआ के साथ आज की प्रस्तुति -

कुहासा है या
घनीभूत हो गई है पीर
या शर्मसार हो रवि
छिप गया है घन के चीर

कौंध उठी है दामिनी
चुक गया है सबका धीर
बेटियों पर बरसाएँ डंडे
कैसे भैया पुलिसिया वीर?

जनता हुँकार उठी है
नहीं देश किसी की जागीर
बहुत सहा है हमने लेकिन
बदलनी होगी अब तस्वीर

-
शील

चित्र - साभार गूगल

Friday, 21 December 2012

हर शब्द हुंकार है






Top of Form
Bottom of Form
 हर शब्द हुंकार है
हर शब्द ललकार
शक्‍ति का निनाद है
बदलाव का शंखनाद

बहुत सहे आघात
करना होगा प्रतिघात
कुंकुम, महावर नहीं
शस्त्र ही तेरा शृंगार

दामिनी की तरह
हर स्‍त्री को लड़ना है
नहीं मुँह ढाँप
अनाचार सहना है

केवल नारे, विरोध नहीं
अब लड़ कर दिखाना है
काल हूँ तेरी
हर वहशी को बताना है

-
शील

चित्र : साभार गूगल
Top of Form
Bottom of Form




Thursday, 20 December 2012

इनकार है


बहुत कुछ घुट रहा है अंतस में पिछले दो दिनों से -


सदियों से रिसी है
अंतस में ये पीड़
स्‍त्री संपत्ति
पुरूष पति
हारा जुए में
हरा सभा में चीर
कभी अग्निपरीक्षा
कभी वनवास
कभी कर दिया सती
कभी घोटी भ्रूण में साँस


क्यों स्वीकारा
संपत्‍ति, जिन्स होना
उपभोग तो वांछित था
कह दे
लानत है
इस घृणित सोच पर
इनकार है
मुझे संपत्‍ति होना


तलाश अपना आसमां
खोज अपना अस्तित्‍व
अब पद्‍मिनी नहीं
लक्ष्मी बनना होगा
जौहर में स्वदाह नहीं
खड्‍ग ले जीना होगा

-
शील

Wednesday, 19 December 2012

हे सृजनहार




आज विधाता से एक सवाल पूछने का बड़ा मन कर रहा है -

हे सृजनहार
पूछती हूँ
आज एक सवाल
क्यों लिख दी तूने
जन्म के साथ
मेरी हार ?


सौंदर्य के नाम पर
अता की दुर्बलता
सौंदर्य का पुजारी
कैसी बर्बरता !
इंसां के नाम पर
बनाए दरिंदे
पुरूष बधिक
हम परिंदे
नोचे-खसोटें
तन, रूह भी लूटें
देख
कैसे, कितना हम टूटे !

(
लिखी जा रही कविता से...)
-शील

Saturday, 15 December 2012

रिश्‍ते




ताँका – रिश्‍ते

१)
जीवन-पूँजी
होते मन के रिश्‍ते
बाँधे प्रेम से
सुख-दुख के साथी
ज्यों दीया और बाती

२)
जन्म के साथ
मिलते हैं रिश्‍ते भी
कई ज्यूँ फूल
कई चुभें ज्यूँ शूल
कई देह की भूल

३)
देखा अक्‍सर
लहू को होते पानी
वही कहानी
किया बेघर हमें
सौंपा था घर जिन्हें

४)
क्यूँ होता है यूँ
अक्‍सर दुनिया में
खूब स्‍नेह से
सींचें जिन रिश्‍तों को
छोड़ें तन्हा हमको

५)
उतार फ़ेंके
केंचुली की तरह
प्यार के रिश्‍ते
आँसुओं संग बहे
रिसते रहे रिश्‍ते

-सुशीला श्योराण 
'शील’

चित्र - साभार गूगल

Sunday, 2 December 2012

क्षणिकाएँ


क्षणिकाएँ -

)

मैं

चंदन हूँ
आग हूँ 
सबने समझा राख
अंगार हूँ मैं
बर्फ़-सी शीतलता
लावे-सी दहक हूँ
फूल पर शबनम
एक महक हूँ मैं
सबने समझा पीर
एक शमशीर हूँ मैं !

२)
ये तन्हाइयाँ
  

ये तन्हाइयाँ
परेशानियाँ
दुश्‍वारियाँ
क्यूँ है गमनशीं
ए हमनशीं
क्या रूका है यहाँ
जो ये रूकेंगी
हो जाएँगी रूखसत
ज़रा पलक उठा के देख
मेरी आँखों में तुम्हें
उम्मीदें दिखेंगी...... 
३)
बैरन सुबह
 

बैरन सुबह
कभी ना आए
मुँदी पलकें
पलकों में सजन
कभी ना जाए

४)
ये फ़ासले
  

ये फ़ासले
नापते हुए तुम
आओगे पास
करोगे सज़दे
छुपा लोगे मुझे
बाँहों के घेरे में
यकीं है मुझे 
क्य़ूँकि मैंने
मेरे हमनवा
मुहब्बत नहीं
इबादत की है

५)
मैं
 और मेरी कलम !

कल्पना की उड़ान के बीच
विचारों को सहेजने-बाँधने के बीच
जो विचार खो जाते हैं 
उन्हें पकड़ने की ऊहा-पोह में
अक्सर कहीं खो जाते हैं
मैं और मेरी कलम !

६)
मेरे दोनों बेटों के लिए -

तुम्हीं मेरे चंदा
झिलमिल दो तारे
सूरज से दीप्यमान
नक्षत्र मेरे उजियारे
तुम्हीं बगिया के फूल
हरते जीवन के शूल
मेरी पाक़ दुआ
ख़ुदा का तुममें नूर
तुम्हीं मेरा गुरुर

७)
जब मन एक हों
तन मंदिर हो जाते हैं
आत्मिक हो प्रेम तो
शरीर शिवाले हो जाते हैं

- सुशीला श्योराण 
शील’

तुम आए



तुम आए 
मरू में तपती रेत पर
बारिश बनकर
जी उठी हूँ
सौंधी-सौंधी
महक मन भर।

तुम्हारे प्रेम की फुहार में
भीग गया है मेरा तन-मन 
लहराता आंचल 
दौड़ रहा है मुझमें
तुम्हारा प्रेम परिमल !

बीज दिए हैं तुमने
कितने ही सपने, आशाएँ
कामनाएँ जग उठी हैं 
खुली आँखों में !
हो गई हूँ एक नदी
तुम्हारे प्रेम में तरंगित
तुम्हारे ही आवेग में 
उन्मादिनी-सी बह रही हूँ - 
समा जाना चाहती हूँ
जिसकी अतल गहराइयों में मौन, 
खुद को खोकर
चाहती हूँ होना एकाकार 
और अभिन्नक तुम्हारे
प्रेम में सरसिज !

देखो ! चाँद भी मुस्कुरा रहा है
सोलह कलाओं को समेटे साथ
हमारे प्रेम का साक्षी
मानो दे रहा है सौगात
बरसा कर शुभ्र चाँदनी !

- शील

चित्र : साभार गूगल