वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Sunday 26 August 2012

स्‍त्री पुरुष का व्याकरण




स्‍त्री पुरुष का व्याकरण

तुम शेष थे
विशेष हो गए
'
मैं ' और 'तुम 'थे जुदा
कब 'हम 'के श्‍लेष ' हो गए

[
श्‍लेष का अर्थ है चिपकना। जब एक ही शब्द से अनेक अर्थ चिपके हुए हों या निकलते हों, तो उसे  श्‍लेष अलंकार कहते हैं।]

-Kavita Malviya

ज़िंदगी अपनी रफ़्तार से दौड़ती रही और स्त्री-पुरूष व्याकरण भी बनता-बिगड़ता रहा कुछ ऐसे -

और जब हम
हमके श्‍लेष  हो गए
तो रूपक हुए उपमा
हम चाँद थे
अब चाँद-से हो गए
बदले उपमान
हम
चंद्रमुखी से
सूरजमुखी हो गए
और अब हुए
अतिश्योक्‍ति
क्योंकि मित्र
हम ज्वालामुखी हो गए !.....:)

-
सुशीला शिवराण (श्योराण)

Monday 20 August 2012

तांका, हाइकु - ईद



इस ताँका के साथ आप सबको ईद मुबारक ! लीजिए हाइकु भी -

)
ईद का चाँद
सेवैयों की मिठास
मिला सवाब !

)
मेरी ईद हो
जो उसकी दीद हो
मिलें वो गले !

)
लेके आया है
अमन का पैगाम
ईद का चाँद।

)
पाक़ महीना
कर जाए पाकीज़ा
सदा के लिए !

)
हुई है दीद
चाँद नज़र आया
ज़हे नसीब !







Saturday 18 August 2012

पूर्वोत्तर के भाई-बहनों की नज़र,



पूर्वोत्तर के लोगों को भय के साये में घर, रोज़गार और कॉलेज छोड़कर जाते देखते तकलीफ़ तो सभी संवेदनशील लोगों को हो रही होगी!
बंगलूरू, हैदराबाद, चेन्नई, पुणे और अब वड़ोदरा भी.....अफ़वाहों का सिलसिला थम ही नहीं रहा ! पूर्वोत्तर के भाई-बहनों की नज़र है यह रचना -

अफ़वाहों पर भरोसा करने लगा है भारत
क्यों अपने ही साए से डरने लगा है भारत !

भाई का भाई से आज उठ गया विश्‍वास
अपने ही घर से उखड़ने लगा है भारत

अफ़वाहों का बाज़ार गर्म, नाकाम हुआ तंत्र
बना खौफ़ का अरण्य़ जलने लगा है भारत

छोड़ कॉलेज, दफ़्तर और घर-बार
अफ़सोस कि उजड़ने लगा है भारत

अपने ही घर में हम नहीं महफ़ूज़
अब महसूस करने लगा है भारत

रख हौंसला, थोड़ी हिम्मत हमवतन
तेरी हिफ़ाज़त की बात करने लगा है भारत

-सुशीला शिवराण (श्योराण)

Wednesday 15 August 2012

हाइकु -स्वाधीनता दिवस,




स्वाधीनता दिवस के हाइकु -
)
आज़ादी जश्‍न
चिंतन, कर्त्तव्य भी
शहादत भी

)
करो या मरो
देके गांधी ने नारा
दे दी
 आज़ादी

)
सत्य, अहिंसा
बापू के हथियार
पूजे दुनिया

)
भगत सिंह
जन में फूँके प्राण
चूम फाँसी को !

)
अंग्रेज़ चित्त
आज़ाद हिन्द फ़ौज
जय सुभाष !

)
नमन तुम्हें
सीमा के प्रहरी
तुमसे हम !

)
जन्मभूमि पे
नित होते कुर्बान
माँ के लाड़ले

)
कारगिल में
किया शत्रु को पस्त
जय जवान !

)
आया शहीद
लिपट तिरंगे में
दो पुष्‍पांजलि

१०)
ले लो संकल्प
बनाएँ भारत को
विश्‍-विजेता

चोका
रानी लक्ष्मीबाई

स्वाधीनता का
था पहला संग्राम
सत्तावन में
बजी थी रणभेरी
झाँसी की रानी
अनोखी जो मिसाल
देशभक्‍ति की
क्या खूब वो मर्दानी
तांत्या टोपे को
लेके अपने साथ
बाँध शिशु को
अपनी पीठ पर
कूद पड़ी थी
आज़ादी के रण में
दिव्य तेज था
झाँसी जान से प्यारी
अस्‍त्र-शस्‍त्र में
थी बहुत निपुण
भीषण युद्ध
ह्यूरोज़ घबराया
गया, लौटा वो
लेके असला
और दुगुनी फ़ौज
रानी पे घात
घेर लिया रानी को
नारी सेना ने 
ऐसा शौर्य दिखाया
भौंचक्‍ शत्रु
तोप, गोलियों साथ
लड़ रहा था
किंतु निर्भय रानी
वो रणचंडी
दुर्गा का अवतार
ले तलवार
शत्रु को काट रही
रण था यह
झाँसी की आज़ादी का
छुड़ाए छक्‍के
अंग्रेज़ हक्‍के-बक्‍के
टूट पड़े वे
मिलकर रानी पे
ज़ख्‍मी रानी
घोड़े पर सवार
नया घोड़ा था
कर नहीं पाया वो
नाले को पार
दुश्‍मन पीछे-पीछे
आया करीब
कहा लक्ष्मीबाई ने
झलकारी !
देखो वह कुटिया
उसमें चलो
जलाओ मेरी चिता
शत्रु तन को
देखो छू भी पाए
कैदी नहीं मैं
मरूँगी आज़ाद ही
न्यौछावर जां
अपनी झाँसी पर
झलकारी ने
मानके वो आदेश
लगाई आग
धू-धू जलती चिता
देख अंग्रेज़
रहे मलते हाथ
दिव्य ज्योति वो
मिली दिव्य ज्योति से
बनी मिसाल
वह देश-प्रेम की
नमन तुम्हें
सुन  वीरांगना
मेरी तुम आराध्या !

-
सुशीला शिवराण (श्योराण)