वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Monday 25 July 2011

बहरूपिये


सुख-दुःख, हर्ष-विषाद,विश्वास-विश्वासघात जैसे अनुभव मानव-जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं ! एक पल में लगता है जैसे सब ख़तम हो गया किन्तु दूसरे ही पल पूरी ऊर्जा से आहत मन नव-संकल्प ले अपने जीवन को तिनका-तिनका जोड़ने और सँवारने में लग जाता है | यही जुझारूपन उसकी जीत है ! विषाद के ये पल कभी आँसू बन बहते हैं तो कभी सृजन का ज़रिया बन जाते हैं :

                         
          

इस मौकापरस्त दुनिया में भेड़ की खाल में भेड़िये हैं
किसे हम अपना कहें ? लगता है सभी बहरूपिये हैं !
बन प्यार के फ़रिश्ते, धोखे दें खूबसूरत धोखे 

खूब सींचें विश्वास, दिल में बसें रूह-
से होके  
                      फिर दें घाव,पीड़, तड़प,कैसे अश्कों को रोके 
इस मौकापरस्त दुनिया में .....................


मतलब, मौकापरस्ती, घात; क्या यही हकीकत है ?
प्रेम, विश्वास और समर्पण की नहीं कोई कीमत है ?
झूठ, धूर्तता, छल-प्रपंच से क्यों हारती हकीकत है ?
इस मौकापरस्त दुनिया में .....................................


ईमान, मासूमियत, सरलता ने दिया बेइंतिहा दर्द है
सच की तलाश में; मिला अक्सर झूठ,फ़रेब, तड़पहै
नहीं लगता जी मेरा चल; बता मुझे कहाँ मेरी कब्र है ! 
इस मौकापरस्त दुनिया में................................



Sunday 17 July 2011

हमें तो फर्स्ट आना है !

                      
                     
सखी ! हमें तो फर्स्ट आना है
यही है निश्चय; यही ठाना है
हमें तो फर्स्ट आना है
रावण का लक्ष्य
ज्यों सीता हरण

बल संभव नहीं छल का करो वरण 
साम, दाम, दंड, भेद अपनाकर  
जीतना है! दाँव-पेंच आजमाकर                                 
                                        
सखी ! हमें तो फर्स्ट आना है|



अब कैसे नियम, कैसा कायदा
हम करेंगे वो जिसमें हो फायदा
सही,गलत,न्याय की नहीं है चिंता
जलती है जलने दो इनकी चिता!


सखी ! हमें तो फर्स्ट आना है|

                                      
सब नियम ताक पर, झूठ-फरेब अपनाना है
परलोक की क्या चिंता, A C R बनवाना है
लक्ष्य किसी तरह ट्राफी को हथियाना है
हम ही हैं श्रेष्ठ; दुनिया को दिखलाना है!  
                                                   
सखी ! हमें तो फर्स्ट आना है|



कार्यवाही ? एक्शन ? बहुत भोली हो!
जो संभव ही नहीं, वह क्यों सोचती हो?
कार्यवाही ना हुई है ना होगी; chill यार
हमें तो फर्स्ट आना है, बस फर्स्ट आना है!



धर्म, चिकित्सा, वकालत या कोई अन्य क्षेत्र ! हर जगह हर प्रकार के इंसान हमें मिल जायेंगे | शिक्षा का क्षेत्र भी इसका अपवाद नहीं ! भारत के पाँच राज्यों में अठारह वर्ष शिक्षण करने के उपरान्त यही पाया कि इस पावन क्षेत्र में भी कुछ लोग हैं जो परिश्रम ना कर, अनैतिकता का सहारा ले, हर प्रतियोगिता में जीत का लक्ष्य रखते है ! यह एक बड़ा दुर्भाग्य है क्योंकि ऐसा करके जो संस्कार हम बच्चों को दे रहें हैं, उससे केवल भयावह भविष्य की कल्पना की जा सकती है !
इस कविता द्वारा सभी गुरुजनों से मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि वे बच्चों को सही संस्कार देकर भारत को एक सुनहरा भविष्य दें |

Sunday 10 July 2011

कहाँ गई ?

              
                                 

कार सुरक्षित कर हाथ में आई
मुट्ठी की हिफाज़त में थी थमाई 
प्रभात पंचिंग पश्चात पर्स में समाई 
फिर अपराह्न समय तुम कहाँ गई ?

                                     
                                       पहले-पहल हुआ कुछ कौतूहल     
                                       मन में मेरे थोड़ी-सी हलचल 
                                       संग अपने गृह-सुरक्षा, लोक्कर 
                                       
लिए   जाने कब,कैसे,तू कहाँ गई ?


अब तो मची अफ़रा-तफरी
खोज हुई गंभीर और गहरी 
सभी कक्षाएँ और स्टाफ-रूम 
होमसाइंस लैब और बाथरूम !

                                 
कहाँ-कहाँ मैंने नहीं खोजा तुझे ?
                                 
केवल निराशा ही लगी हाथ मुझे 
                                 
हाऊस-कीपिंग तो मुझसे ही बूझे
                                 
रिसेप्शन को भी कुछ ना सूझे  !


कितनी बेकरार, कितनी बेकल 
एक साल-सा गुज़रा, हरेक पल
मुसीबत आई; छप्पर फाड़ के आई 
मनभावन बरखा, सैलाब बन आई !

                                      
                                 ना कोई तिपहिया;  ना कोई रिक्शा 
                                 
राम-बाण ज्यों याद आई पति-सुरक्षा 
                                 
दूरभाष पर ही लगाई अब गुहार उन्हें 
                                 
फँस गई हूँ बुरी तरह, ले जाइये मुझे !


दिमाग से नहीं जाती मगर छवि तुम्हारी  
कितना दिल में सूनापन, कितनी बेकरारी?
हर घड़ी तुम्हारा ही ख़्याल और इंतज़ार मुझे 
बहुत तड़पा लिया; अब तो दे दो दरस मुझे !

Sunday 3 July 2011

नज़राना




                                                                      नज़राना    नज़राना


शब्दों से, भावों से, कागज़ से, कलम से 
सोचती हूँ लक्ष, कविता तुम्हें नज़राना दूँ !

अपनी बगिया की बहार हो
अनेक गुणों की तुम खान हो 
अपने व्यक्तित्व की स्वयं पहचान हो 
फिर भी मेरी तारीफ़ की मोहताज हो?


                                          अनुशासन, संयम का तुम प्रतिरूप 
                                          जिम, कसरत से सँवारा-निखारा रूप
                                          गृह-सज्जा में छलके तुम्हारा कला-सौंदर्य 
                                          निज-सुता में झलके तुम्हारा रूप-लावण्य |


तुम्हारी शख्सियत का मन कायल  
अक्सर तन्हाई में सालता है ख़याल 
निकट होकर भी तनिक-सी दूरी बनी ही रही 
मैत्री जो हो सकती थी प्रगाढ़,कमतर ही रही |


                                       क्या अभिभावक का नाता बीच में आया? 
                                       यही दायरा किंचित हमारे दरमियाँ आया 
                                       फिर भी यह भी कुछ कम अहम् तो नहीं  
                                       मौन आपसी समझ, वाणी से कम तो नहीं!


केरल में बिछुड़े , फेसबुक पर मिले 
चल निकले संवादों के फिर सिलसिले 
अलस सुबह,चाय और तुम्हारा सुविचार 
आनंद की दे तरंग, सारा दिन दे सँवार !


                                        यहाँ जिसे पाना है,एक दिन खोना भी है 
                                        नौसेना में;बिछोह का ये दस्तूर पुराना है !
                                        जहाँ भी जाएँ; बाँटना हमें प्यार और ज्ञान है 
                                        जीवन का सखी,यही सबसे सुंदर नज़राना है!




टिपण्णी - प्रथम पद्यांश की प्रथम पंक्ति के 'बगिया' शब्द में श्लेष अलंकार है | यहाँ बगिया शब्द के दो अर्थ हैं - लक्ष्मी का परिवार और उनका सुंदर, हरा-भरा बगीचा |

Friday 1 July 2011

हिंदुस्तान

     
                                                                  हिंदुस्तान 

हिंदुस्तान ........................

हिंदुस्तान प्यारा हिंदुस्तान
सबसे निराली इसकी शान
सब देशों में देश महान
हिंदुस्तान प्यारा हिंदुस्तान

गौरवशाली इसकी गाथा
निशि-दिन मेरा मन गाता
अडिग हिमाला चूमे इसका माथा
सागर इसके चरण है धोता
तिरंगा बना है इसकी शान

हिंदुस्तान प्यारा हिंदुस्तान ......

वीर सुभाष की सुन टंकार
मची अंग्रेजों में प्रलय अपार
करो या मरो का गूंजा गान
चारों तरफ़ थी यही पुकार
विदेशी शासन का मिटा निशाँ


हिन्दुस्तान ....................


हम इसकी हैं प्रखर संतान
देंगे इसको नए आयाम
देके नव उत्कर्ष,उत्थान
बढ़ायेंगे हम इसका मान
शपथ लेती इसकी संतान


हिन्दुस्तान प्यारा हिंदुस्तान
सबसे निराली इसकी शान
मेरा
प्यारा हिंदुस्तान
हिंदुस्तान
प्यारा हिंदुस्तान

-सुशीला श्योराण