सखी ! हमें तो फर्स्ट आना है
यही है निश्चय; यही ठाना है
हमें तो फर्स्ट आना है
रावण का लक्ष्य ज्यों सीता हरण
बल संभव नहीं छल का करो वरण
साम, दाम, दंड, भेद अपनाकर
साम, दाम, दंड, भेद अपनाकर
जीतना है! दाँव-पेंच आजमाकर
अब कैसे नियम, कैसा कायदा
हम करेंगे वो जिसमें हो फायदा
सही,गलत,न्याय की नहीं है चिंता
जलती है जलने दो इनकी चिता!
सखी ! हमें तो फर्स्ट आना है|
सखी ! हमें तो फर्स्ट आना है|
सब नियम ताक पर, झूठ-फरेब अपनाना है
परलोक की क्या चिंता, A C R बनवाना है
लक्ष्य किसी तरह ट्राफी को हथियाना है
हम ही हैं श्रेष्ठ; दुनिया को दिखलाना है! सखी ! हमें तो फर्स्ट आना है|
कार्यवाही ? एक्शन ? बहुत भोली हो!
जो संभव ही नहीं, वह क्यों सोचती हो?
कार्यवाही ना हुई है ना होगी; chill यार
हमें तो फर्स्ट आना है, बस फर्स्ट आना है!
धर्म, चिकित्सा, वकालत या कोई अन्य क्षेत्र ! हर जगह हर प्रकार के इंसान हमें मिल जायेंगे | शिक्षा का क्षेत्र भी इसका अपवाद नहीं ! भारत के पाँच राज्यों में अठारह वर्ष शिक्षण करने के उपरान्त यही पाया कि इस पावन क्षेत्र में भी कुछ लोग हैं जो परिश्रम ना कर, अनैतिकता का सहारा ले, हर प्रतियोगिता में जीत का लक्ष्य रखते है ! यह एक बड़ा दुर्भाग्य है क्योंकि ऐसा करके जो संस्कार हम बच्चों को दे रहें हैं, उससे केवल भयावह भविष्य की कल्पना की जा सकती है !
इस कविता द्वारा सभी गुरुजनों से मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि वे बच्चों को सही संस्कार देकर भारत को एक सुनहरा भविष्य दें |
इस कविता द्वारा सभी गुरुजनों से मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि वे बच्चों को सही संस्कार देकर भारत को एक सुनहरा भविष्य दें |
yet another beautiful poem Sushila...!!!!!!nice message ...:)
ReplyDeleteThank you dear friend.
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