मन पखेरू
उड़ चला
उड़ चला
पंख प्रीत के
प्रीत ही ध्येय
प्रीत अमिय !
बढ़ चला
हौंसला प्रीत का
मिटाने फ़ासला
प्रीत ही संबल
हौंसला प्रीत का
मिटाने फ़ासला
प्रीत ही संबल
अवलंबन भी प्रीत ही !
हार-जीत
जय-पराजय
सोचती कहाँ है प्रीत
लुटा कर सब
पा लेती है
पग-पग पगती प्रीत !
जय-पराजय
सोचती कहाँ है प्रीत
लुटा कर सब
पा लेती है
पग-पग पगती प्रीत !
प्रिय से बात
प्रिय का साथ
प्रिय का स्नेह
प्रिय का हाथ
आया हाथ
महक उठी प्रीत !
महक उठी प्रीत !
थोड़ा प्यार
थोड़ी मनुहार
थोड़ी मनुहार
थोड़ी जिद्द
थोड़ा दुलार
बस यही जीवन-पूँजी
जिसे लुटाकर
पाना है सार प्रीत का
प्रश्न कहाँ हार-जीत का !
थोड़ा प्यार
ReplyDeleteथोड़ी मनुहार
थोड़ी जिद्द
थोड़ा दुलार
बस यही जीवन-पूँजी
जिसे लुटाकर
पाना है सार प्रीत का
प्रश्न कहाँ हार-जीत का !
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ हैं मैम!
सादर
हार-जीत
ReplyDeleteजय-पराजय
सोचती कहाँ है प्रीत.... !
लुटा कर सब
पा लेती है
पग-पग पगती प्रीत
होती है तभी सच्ची प्रीत.... !
थोड़ा प्यार
ReplyDeleteथोड़ी मनुहार
थोड़ी जिद्द
थोड़ा दुलार
बस यही जीवन-पूँजी
जिसे लुटाकर
पाना है सार प्रीत का
प्रश्न कहाँ हार-जीत का !
....बहुत सार्थक और भावमयी अभिव्यक्ति..बहुत सुंदर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति , सार्थक, आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.
bahut bhaavpurn kavita. sahi kahaa preet mein prashn kahaan haar jeet ka. bahut sundar, badhai Sushila ji.
ReplyDeleteबस यही जीवन-पूँजी
ReplyDeleteजिसे लुटाकर
पाना है सार प्रीत का
प्रश्न कहाँ हार-जीत का !....
bahut khub....बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
ReplyDelete♥
आदरणीया सुशीला जी
सस्नेहाभिवादन !
आपने भी प्रीत के रंग बिखेर दिए … हुम्म्मऽऽऽ … :)
हार-जीत
जय-पराजय
सोचती कहाँ है प्रीत
लुटा कर सब
पा लेती है
पग-पग पगती प्रीत !
क्या बात है !
भई वाह !
सुंदर भावों से सुसज्जित सुंदर कविता के लिए आभार!
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bhaut khubsurat bhaavo aur shbado ka sundar samyojan ke sath ek purn rachna....
ReplyDeleteथोड़ा प्यार
ReplyDeleteथोड़ी मनुहार
थोड़ी जिद्द
थोड़ा दुलार
बस यही जीवन-पूँजी
जिसे लुटाकर
पाना है सार प्रीत का ..बहुत सुन्दर.
हार-जीत
ReplyDeleteजय-पराजय
सोचती कहाँ है प्रीत
लुटा कर सब
पा लेती है
पग-पग पगती प्रीत !
sach hai , preet to bas preet hai
सही कहा है आपने ! ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ! प्रीति में ही सब - कुछ है !
ReplyDeleteथोड़ा प्यार
ReplyDeleteथोड़ी मनुहार
थोड़ी जिद्द
थोड़ा दुलार
बस यही जीवन-पूँजी
जिसे लुटाकर
पाना है सार प्रीत का
प्रश्न कहाँ हार-जीत का !
गहरी बात ...उम्दा रचना
पाना है सार प्रीत का
ReplyDeleteप्रश्न कहाँ हार-जीत का !
bahut hi badhiya shushila ..aap sahi hai jaha pret hai waha aise prshna bemani hai ....bahut badhiya
ओह! बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteमन में प्रीत का सुखद अहसास कराती हुई.
पढकर मन मग्न हो गया है जी.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है,सुशीला जी.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति .
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