ज़रा-सा पाँव क्या फ़िसला हमारा
उठने को बेचैन तेरी उंगली मचल गई
न देखा झाँक खुद के गिरेबां में कभी
उठने को बेचैन तेरी उंगली मचल गई
न देखा झाँक खुद के गिरेबां में कभी
कहाँ-कहाँ, कब-कब तेरी नीयत फ़िसल गई
औरों पे फ़िकरे कसने से पहले तू देख तो ले
दोगली सीरत तेरी, कर तुझे कैसे ज़लील गई
औरों पे फ़िकरे कसने से पहले तू देख तो ले
दोगली सीरत तेरी, कर तुझे कैसे ज़लील गई
अब भरोसा करना गुनाह है ये जान ले
भलाई खुद की जां पे बन मुश्किल गई
चले थे किसी मासूम को बचाने मगर
नेकी से अपनी ही उंगलि झुलस गई
दगाबाज़ फ़रिश्ता बन फिरते यहाँ
अपनी नादानी; हो जी का जंजाल गई
अपनी नादानी; हो जी का जंजाल गई
सदियों से नाशुक्रे, ज़ालिम हैं लोग यहाँ
मीरा को ज़हर, ईसा को दी सलीब गई !
मीरा को ज़हर, ईसा को दी सलीब गई !
very nice really touched my heart
ReplyDeleteबेहतरीन कविता।
ReplyDeleteसादर
बढिया प्रसतुति .. सही है !!
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी भाव , सुंदर कविता ।
ReplyDeleteSushila ji aapne apne anubhav ko bakhoobi shabdon mein likha hai.. ye anubhav hi hame insaan banate hain..
ReplyDeletebhaut khubsurat... happy diwali....
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको.
दीपावली के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा,सुशीला जी.
पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । दीपावली की शुभकामनाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteआपको सपरिवार दीप पर्व की सादर बधाईयां....
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें….!
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
दगाबाज़ फ़रिश्ता बन फिरते यहाँ
ReplyDeleteअपनी नादानी; हो जी का जंजाल गई
Bahut Sunder....
मीरा को ज़हर, ईसा को दी सलीब गई !...People are sleeping here...One who tries to awake them, Crowd kills those Human..Be it Isha or else...
ReplyDeleteसदियों से नाशुक्रे, ज़ालिम हैं लोग यहाँ
ReplyDeleteमीरा को ज़हर, ईसा को दी सलीब गई !
बहुत ही भावपूर्ण कविता..जिंदगी भी अच्छी लगी.
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है.
www.belovedlife-santosh.blogspot.com (हिंदी कवितायेँ)
ज़रा-सा पाँव क्या फ़िसला हमारा
ReplyDeleteउठने को बेचैन तेरी उंगली मचल गई.... बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ज़रा-सा पाँव क्या फ़िसला हमारा
ReplyDeleteउठने को बेचैन तेरी उंगली मचल गई
गजब का शेर , मुबारक हो ........