वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Wednesday, 12 October 2011

ज़िन्दगी






मरोड़ती है निचोड़ती है 

जिंदगी खूब झिंझोड़ती है



कभी हम सातवें आसमान पे 

कभी खाई में खदेड़ती है


बख्शा है किस शय को इसने

अमृत को हाला में उड़ेलती है


किस बात का है गुरूर तुझे 

देख कैसे बखिया उधेड़ती है 

10 comments:

  1. बहुत बहुत अच्छा लिखा है मैम आपने।

    सादर

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  2. कितनी अक्खड़ता से बयान कर दी ज़िन्दगी की सच्चाई

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  3. जिंदगी की उतार चढ़ाव की अच्छी प्रस्तुति , बधाई ।

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  4. क्या बात कही आपने...
    खूबसूरत अभिव्यक्ति....
    सादर....

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  5. मरोड़ती है निचोड़ती है
    जिंदगी खूब झिंझोड़ती है

    पहले रिश्ता जोड़ती है
    फिर न पीछा छोड़ती है.

    गम के धागों से बुनी
    चादर हमेशा ओढ़ती है.

    बहुत सुंदर रचना,बेशक.

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  6. बख्शा है किस शय को इसने

    अमृत को हाला में उड़ेलती है
    bilkul shi.

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  7. बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....

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