उजली चाँदनी रातें
शीतल स्नेह की बरसातें
हवेली का वो चौक
चौक में सटी चारपाइयाँ
१२-१३ भाई-बहनों संग
होती खूब चुहलबाजियाँ
रूठने-मनाने की वो बातें
याद आती हैं ...............
हवेली के भीतर का चौक
स्त्रियों, बच्चों का साम्राज्य
दिन भर की थकान के बाद
उनींदी माँ, काकी, ताइयाँ
कोई सुनाती कहानियाँ
कोई लाडो की मनुहार पर
पिरोती गीतों की लड़ियाँ
गीतों की वो तान
याद आती है .................
चूल्हे थे चार
कैसा ये न्यारपन
भूख लगी
जहाँ रोटी पहले सिंकती
दही-कटोरा हाथ ले
बच्चों की महफ़िल
वहीँ जमती
बड़े अधिकार से
"पहले मैं" लड़ते थे
वो मीठी लड़ाइयाँ
याद आती हैं ...............
ईमली पर चढ़
कटारे तोड़ना
चठ्कारे ले
दावत उड़ाना
पनघट की मुंडेर
"छू ले " पुकारना
अलस दोपहरी
चोपड़ सजाना
गुड़िया की चूनर
गोटा लगाना
गुड्डे की बारातें
याद आती हैं ...........
सावन में झूलना
मोर ज्यूँ दिल का नाचना
बारिश में नहाना
गीली, सौंधी रेत
देर तक घरौंदे बनाना
लाल, रेशमी तीज ढूँढना
उजले आसमां में
इन्द्रधनुष खोजना
"मेरै मामै की धनक "
खिलकर पुकारना
इन्द्रधनुष के वे रंग
याद आते हैं .................
♥
ReplyDeleteआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
.
ReplyDeleteकविता भी बहुत शानदार है … बधाई !
:)
सुशीला , इस कविता ने तो जैसे भीतर तक मन को अपनी रिमझिम फुहारों से सराबोर कर दिया ...... बचपन की यादें ताज़ा कर दी .....बहुत ही प्यारी लगी यह कविता.
ReplyDeletemain is bachpan ki kavita padh kar apne bachpan me chala gay
ReplyDeleteapna ek sher likhna chahunga
kai maasoom chehre yaad aaye
kitabon se jo par titli ke nikle
aadil rasheed
बचपन की यादें कभी मिट नहीं सकतीं।
ReplyDeleteइस पोस्ट पर देर से आने के लिए माफी चाहूँगा।
विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteकल 07/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
Gahan Abhivykti....Behtreen Rachna ...
ReplyDeleteachchha laga aapki veethi me aana ...bahut sundar rachna
ReplyDeletebadhiya likha hai aapne...sundar
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढि़या ।
ReplyDeletepadhte-padhte ham bhi kho gaye the apni bachpan kee yaadon mein..
ReplyDeletechitra bhi bahut man bhyaa.
बहुत ही सुन्दर कविता...
ReplyDeleteसादर...
ह्म्म्मम्म यादें तो बहुत आ रही हैं आपको.....और आपके संग हमें भी किसी याद की चुहल में डाले दे रही है....धन्यवाद आपका
ReplyDeleteआज आपका ब्लोग पहली बार देखा -अच्छा लगा !
ReplyDeleteआपके ब्लोग पर भ्रमण कर रहा हूं-पूरा देखूंगा !
आज तो आपकी यही कविता पढी़ है-अच्छी लगी !
बच्चपन की मधुर यादों को आप ने बखूबी उकेरा है !
आप की इन पंक्तियों में आपकी स्नेहिल स्मृतियों के
बिम्बों की मार्फ़त आपका बच्चपन झलकता है !
वाह ! साधुवाद !
यह पंक्तियां भाईं-
"ईमली पर चढ़
कटारे तोड़ना
चठ्कारे ले
दावत उड़ाना
पनघट की मुंडेर
"छू ले " पुकारना
अलस दोपहरी
चोपड़ सजाना
गुड़िया की चूनर
गोटा लगाना
गुड्डे की बारातें
याद आती हैं ..........."
awsumm bua ji..too good.
ReplyDeleteaaj pahli bar aapki ye kavita padhi ...bahut sundar hai....bahut achha lag raha hai padh kar...:)
ReplyDeleteबचपन की यादें ताज़ा कर दीं...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteसच .. आपने तो बचपन में पंहुचा दिया...
ReplyDeleteसुब्दर भावों से सजी सुंदर रचना के लियें बधाई सुशीला जी..
हवेली के भीतर का चौक
ReplyDeleteस्त्रियों, बच्चों का साम्राज्य
दिन भर की थकान के बाद
उनींदी माँ, काकी, ताइयाँ
कोई सुनाती कहानियाँ
कोई लाडो की मनुहार पर
पिरोती गीतों की लड़ियाँ
गीतों की वो तान
याद आती है ...........
**** बेहद मर्मस्पर्शी रचना ....!
सादर
अनुराग त्रिवेदी - एहसास