घनी काली गहराती रात
शांत अनमनी स्तब्ध रात
बढ़ता प्रकोप शीत का
कुछ सोईं कुछ जागीं
उनींदी, बोझिल आँखें
नर्म,गर्म बिस्तर में
मांगती ढूँढती
कुछ पल मीठी नींद |
यकायक
चीर गई सन्नाटा
मोबाईल की रिंग टोन
मानो बिजली सी कौंध गई
सोने को आतुर शहर के कानों में
मेरा भी सीना लरज गया
हुई हड़बड़ाहट आवाक
दिल की धक्-धक् थम गई
फ़ोन था छोटे बेटे का
उसके संयत स्वर में
ये कैसा तूफान था
कितना उत्तेजित
कुछ बौखलाया-सा
कुछ मौन सा
कुछ कुछ बोलता सा
"माँ टी.वी. खोलो -
खोला टी.वी.
थम गई साँसे
देख रही जो
साक्षात देखा जो आँखों ने
मान न पाई मेरी आँखें !
चौपाटी, वी.टी. का नरसंहार
खुली सड़क पर था हाहाकार
हैण्डग्रेनेड,ए.के-47 ले घूम रहे
अंधाधुंध मौत थे बाँट रहे !
मौत का था खुला तांडव
वह कैसा वहशीपन था
अल्लाह-ज़िहाद ओ इंसानियत का
किया था खून दरिंदों ने
जिसको गोली मारी
ना जाने वो पथिक
हिन्दू था या मुसलमां
हलाल हो बिखर गया
बिखर गया घर-परिवार,
रोया बचपन हुआ अनाथ !
मौत से कभी ना हारी ज़िन्दगी
अपना जीवन जीती ज़िन्दगी
हेमन्त करकरे और कामटे
सालसकर और ओम्बले
न कर परवाह गोलियों की
बीच समर में कूद गए
खा गोलियां सीने पर
अरि दमन कर डाला
कायर कसाब को धर दबोच
देश धर्म निभा डाला |
आज सालगिरह है तीसरी
सूने सबके दिल के साज़
आँखों में क्रोधाग्नि लिए
हिन्दुस्तानी माँगें जवाब
खिलाते हो जिसे बिरयानी
क्या भारत का दामाद बनाओगे
रूपये करोड़ों बहा कर
रूपये करोड़ों बहा कर
करते हो हिफाज़त कातिल की
दो जून तरसती जनता को
तुम रोटी कब खिलाओगे ??
देश के लहुलुहान होने के दिन को आपने याद किया है. शहीदों को याद किया है. हमें भी इसमें शामिल करने के लिए आभार.
ReplyDeleteIts sad that we have failed in delivering justice to those who lost their life... Very well written. - Sanjay Sharma
ReplyDeleteमुंबई हमले की तीसरी बरसी पर बहुत अच्छी और मार्मिक शब्दांजली दी है मैम!
ReplyDelete-----
कल 28/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
रूपये करोड़ों बहा कर
ReplyDeleteकरते हो हिफाज़त कातिल की
दो जून तरसती जनता को
तुम रोटी कब खिलाओगे ??
....बहुत भावपूर्ण और सटीक प्रस्तुति..शहीदों को नमन !
सामयिक और सार्थक प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.
जाने कब तक यह सिलसिला चलता रहेगा ...
ReplyDeleteसार्थक प्रश्न उठाती अच्छी रचना .. शहीदों को नमन ..
ReplyDeleteसरकार सोयी हुई है .
रूपये करोड़ों बहा कर
ReplyDeleteकरते हो हिफाज़त कातिल की
दो जून तरसती जनता को
तुम रोटी कब खिलाओगे..
बहुत मार्मिक और सवेदनशील रचना ...
मगर अफ़सोस, की ये सरकार गूंगी बहरी हो गई जो थप्पड़ खाकर भी नहीं सुधरती |
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*आदरणीया सुशीला जी *
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं !
सभी परिवार जनों को
हार्दिक बधाई !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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अत्यंत सार्थक रचना....
ReplyDeleteयह भी पढ़िए २६/११
सादर....
भाव पूर्ण .....
ReplyDeleteसामयिक और सार्थक प्रस्तुति.....
ReplyDeleteआह! सिहर उठा मन.
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति बहुत मार्मिक और हृदयस्पर्शी है.
शब्द नही हैं मेरे पास व्यक्त करने को.
बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,सुशीला जी.
आज सालगिरह है तीसरी
ReplyDeleteसूने सबके दिल के साज़
आँखों में क्रोधाग्नि लिए
हिन्दुस्तानी माँगें जवाब
आपकी कवितायेँ पढ़कर ऐसा प्रतीत हुआ कि आप समाज और व्यक्ति की संवेदना को बेहतर तरीके से समझती हैं .....! निश्चित रूप से आपका लेखन नए आयाम स्थापित करता हुआ समाज को एक नई दिशा देगा ....सार्थक लेखन क लिए आपको शुभकामनायें ..!
is katha kavita se man bhar uthaa..badhaaee..is utkrisht kavita ke liye...
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