वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Sunday, 20 November 2011

नेता पुराण




खद्दर राखै चमक्योड़ी,  खूब धोळी अर ऊजळी
जनता नै ये खूब बिलमावैं, बोलैं झूठ मोकळी

इणको धरम एक, करम एक, कुरसी है इणको राम
देस, जनता जावै भाड़ मैं इणनैं बस माया सूँ काम

वोटां खातर नित नई चाल और पाखंड खिंडावैं
कदे शाहबानो, भँवरी और रूचिका नै बलि चढावैं

कदे जाट, कदे गुजर तो कदे मीणां नैं देवैं आरक्षण
है या राजनीति वोटां की, मूळ मैं है अणको भक्षण

इण सब री है एक ही जात और एक ही है औकात
मिली कुर्सी लूट; डर नीं भाया बेईमानी रो सूत कात

सुशीला श्योराण

2 comments:

  1. देस, जनता जावै भाड़ मैं इणनैं बस माया सूँ काम

    बहुत खूब लिखा है मैम!

    सादर

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  2. बहुत करारा... तीक्ष्ण आवेग....
    सादर...

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