सुख-दुःख, हर्ष-विषाद,विश्वास-विश्वासघात जैसे अनुभव मानव-जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं ! एक पल में लगता है जैसे सब ख़तम हो गया किन्तु दूसरे ही पल पूरी ऊर्जा से आहत मन नव-संकल्प ले अपने जीवन को तिनका-तिनका जोड़ने और सँवारने में लग जाता है | यही जुझारूपन उसकी जीत है ! विषाद के ये पल कभी आँसू बन बहते हैं तो कभी सृजन का ज़रिया बन जाते हैं :
इस मौकापरस्त दुनिया में भेड़ की खाल में भेड़िये हैं
किसे हम अपना कहें ? लगता है सभी बहरूपिये हैं !
किसे हम अपना कहें ? लगता है सभी बहरूपिये हैं !
बन प्यार के फ़रिश्ते, धोखे दें खूबसूरत धोखे
खूब सींचें विश्वास, दिल में बसें रूह-से होके
फिर दें घाव,पीड़, तड़प,कैसे अश्कों को रोके
मतलब, मौकापरस्ती, घात; क्या यही हकीकत है ?
प्रेम, विश्वास और समर्पण की नहीं कोई कीमत है ?
झूठ, धूर्तता, छल-प्रपंच से क्यों हारती हकीकत है ?
इस मौकापरस्त दुनिया में .....................................
प्रेम, विश्वास और समर्पण की नहीं कोई कीमत है ?
झूठ, धूर्तता, छल-प्रपंच से क्यों हारती हकीकत है ?
इस मौकापरस्त दुनिया में .....................................
ईमान, मासूमियत, सरलता ने दिया बेइंतिहा दर्द है
सच की तलाश में; मिला अक्सर झूठ,फ़रेब, तड़पहै
नहीं लगता जी मेरा चल; बता मुझे कहाँ मेरी कब्र है !
सच की तलाश में; मिला अक्सर झूठ,फ़रेब, तड़पहै
नहीं लगता जी मेरा चल; बता मुझे कहाँ मेरी कब्र है !
इस मौकापरस्त दुनिया में................................
सच की तलाश में सच में बहुत मुश्किलें आती हैं।
ReplyDeleteमनोज जी ! कविता पढ़ने और अपनी राय देने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteटिप्पणियों के लिए लगाई Word verification कृपया हटा दें तो टिप्पणी लिखने में आसानी हो जाएगी.
ReplyDeleteआपकी कई पोस्ट्स पढ़ गया हूँ. इनमें एक मिशन दिखाई दिया है. आपके ब्लॉग का अनुसरण करूँगा...हालाँकि मुझे टीचरों से बहुत डर लगता है :)
Thannks for writing this
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