कार सुरक्षित कर हाथ में आई
मुट्ठी की हिफाज़त में थी थमाई
प्रभात पंचिंग पश्चात पर्स में समाई
फिर अपराह्न समय तुम कहाँ गई ?
पहले-पहल हुआ कुछ कौतूहल
मन में मेरे थोड़ी-सी हलचल
संग अपने गृह-सुरक्षा, लोक्कर
लिए न जाने कब,कैसे,तू कहाँ गई ?
लिए न जाने कब,कैसे,तू कहाँ गई ?
अब तो मची अफ़रा-तफरी
खोज हुई गंभीर और गहरी
सभी कक्षाएँ और स्टाफ-रूम
होमसाइंस लैब और बाथरूम !
कहाँ-कहाँ मैंने नहीं खोजा तुझे ?
केवल निराशा ही लगी हाथ मुझे
हाऊस-कीपिंग तो मुझसे ही बूझे
रिसेप्शन को भी कुछ ना सूझे !
कितनी बेकरार, कितनी बेकल
एक साल-सा गुज़रा, हरेक पल
मुसीबत आई; छप्पर फाड़ के आई
मनभावन बरखा, सैलाब बन आई !
मुसीबत आई; छप्पर फाड़ के आई
मनभावन बरखा, सैलाब बन आई !
ना कोई तिपहिया; ना कोई रिक्शा
राम-बाण ज्यों याद आई पति-सुरक्षा
दूरभाष पर ही लगाई अब गुहार उन्हें
फँस गई हूँ बुरी तरह, ले जाइये मुझे !
दिमाग से नहीं जाती मगर छवि तुम्हारी
कितना दिल में सूनापन, कितनी बेकरारी?
हर घड़ी तुम्हारा ही ख़्याल और इंतज़ार मुझे
राम-बाण ज्यों याद आई पति-सुरक्षा
दूरभाष पर ही लगाई अब गुहार उन्हें
फँस गई हूँ बुरी तरह, ले जाइये मुझे !
दिमाग से नहीं जाती मगर छवि तुम्हारी
कितना दिल में सूनापन, कितनी बेकरारी?
हर घड़ी तुम्हारा ही ख़्याल और इंतज़ार मुझे
बहुत तड़पा लिया; अब तो दे दो दरस मुझे !
Found the bunch of keys!!!!!! God is great. Thank you friends for your prayers!
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