नज़राना नज़राना
शब्दों से, भावों से, कागज़ से, कलम से
सोचती हूँ लक्ष, कविता तुम्हें नज़राना दूँ !
अनेक गुणों की तुम खान हो
अपने व्यक्तित्व की स्वयं पहचान हो
फिर भी मेरी तारीफ़ की मोहताज हो?
अनुशासन, संयम का तुम प्रतिरूप
जिम, कसरत से सँवारा-निखारा रूप
गृह-सज्जा में छलके तुम्हारा कला-सौंदर्य
निज-सुता में झलके तुम्हारा रूप-लावण्य |
तुम्हारी शख्सियत का मन कायल
अक्सर तन्हाई में सालता है ख़याल
निकट होकर भी तनिक-सी दूरी बनी ही रही
क्या अभिभावक का नाता बीच में आया?
यही दायरा किंचित हमारे दरमियाँ आया
फिर भी यह भी कुछ कम अहम् तो नहीं
मौन आपसी समझ, वाणी से कम तो नहीं!
केरल में बिछुड़े , फेसबुक पर मिले
चल निकले संवादों के फिर सिलसिले
अलस सुबह,चाय और तुम्हारा सुविचार
आनंद की दे तरंग, सारा दिन दे सँवार !
यहाँ जिसे पाना है,एक दिन खोना भी है
नौसेना में;बिछोह का ये दस्तूर पुराना है !
जहाँ भी जाएँ; बाँटना हमें प्यार और ज्ञान है जीवन का सखी,यही सबसे सुंदर नज़राना है!
टिपण्णी - प्रथम पद्यांश की प्रथम पंक्ति के 'बगिया' शब्द में श्लेष अलंकार है | यहाँ बगिया शब्द के दो अर्थ हैं - लक्ष्मी का परिवार और उनका सुंदर, हरा-भरा बगीचा |
wow....sush...am rendered speechless by ur love..such a wonderful poem written on me and our friendship....thank u dear friend....may god bless u with all the best in life n may all ur wishes come true....and i know the best is yet to come....!!!!!!!:)))
ReplyDeleteये शब्द मेरे ह्रदय के भाव (emotions) हैं! I miss Jaishree ma'am, Usha, Vineet, Vineeta, Diana, Reena Sharma, Renee, Sincy, Pratibha, Jersy, Debarati, Renu and so many other awesome teachers and wonderful ladies!!!!!!!!! Really miss NPS and Ravi Sir.
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