सुहाना मौसम ! आठवीं मंज़िल से इस भीगे-भीगे मंज़र को देख रही हूँ और प्रकृति ने दे ही दी कुछ पंक्तियाँ सुबह-सवेरे -
भीगा अंबर
भीगी है धरा
भीगे तरूवर
खड़े हैं साधे
मौन
भीगी-भीगी घास
भिगो गई मुझे !
निस्पंद कुसुम
फैली सुवास
पी नहीं पास
अँसुवन से
सील गया मन
ये बरसात
देती है पीर
तेरे बिन
सुन सजन।
बहुत सुन्दर सुशीला जी....
ReplyDeleteप्यारी सी रचना...
अनु
अहसास जगाती सुंदर रचना,,,,सुसीला जी बधाई
ReplyDeleteRECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसात दिन से सब कुछ मौन भीग रहा है हमारे सहर में भी....
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति....
सादर।
सावन इस पीर को बढा देता है ... कोमल एहसास लिए है ये रचना ...
ReplyDeleteमन को भिगो जाती हैं कभी कभी ये बारिश .....
ReplyDeleteसुंदर भाव !