वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Friday, 3 August 2012




सुहाना
मौसम ! आठवीं मंज़िल से इस भीगे-भीगे मंज़र को देख रही हूँ और प्रकृति ने दे ही दी कुछ पंक्तियाँ सुबह-सवेरे -

भीगा अंबर
भीगी है धरा
भीगे तरूवर
खड़े हैं साधे मौन
भीगी-भीगी घास
भिगो गई मुझे !

निस्पंद कुसुम
फैली सुवास
पी नहीं पास
अँसुवन से
सील गया मन
ये बरसात
देती है पीर
तेरे बिन
सुन सजन

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर सुशीला जी....
    प्यारी सी रचना...

    अनु

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  2. सात दिन से सब कुछ मौन भीग रहा है हमारे सहर में भी....
    सुंदर अभिव्यक्ति....
    सादर।

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  3. सावन इस पीर को बढा देता है ... कोमल एहसास लिए है ये रचना ...

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  4. मन को भिगो जाती हैं कभी कभी ये बारिश .....
    सुंदर भाव !

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