स्त्री पुरुष का व्याकरण
तुम शेष थे
विशेष हो गए
'मैं ' और 'तुम 'थे जुदा
तुम शेष थे
विशेष हो गए
'मैं ' और 'तुम 'थे जुदा
कब 'हम 'के श्लेष ' हो गए
[श्लेष का अर्थ है चिपकना। जब एक ही शब्द से अनेक अर्थ चिपके हुए हों या निकलते हों, तो उसे श्लेष अलंकार कहते हैं।]
[श्लेष का अर्थ है चिपकना। जब एक ही शब्द से अनेक अर्थ चिपके हुए हों या निकलते हों, तो उसे श्लेष अलंकार कहते हैं।]
-Kavita Malviya
ज़िंदगी अपनी रफ़्तार से दौड़ती रही और स्त्री-पुरूष व्याकरण भी बनता-बिगड़ता रहा कुछ ऐसे -
और जब हम
’हम’ के श्लेष हो गए
तो रूपक हुए उपमा
हम चाँद थे
अब चाँद-से हो गए
बदले उपमान
हम
चंद्रमुखी से
सूरजमुखी हो गए
और अब हुए
अतिश्योक्ति
क्योंकि मित्र
हम ज्वालामुखी हो गए !.....:)
-सुशीला शिवराण (श्योराण)
हम चाँद थे
अब चाँद-से हो गए
बदले उपमान
हम
चंद्रमुखी से
सूरजमुखी हो गए
और अब हुए
अतिश्योक्ति
क्योंकि मित्र
हम ज्वालामुखी हो गए !.....:)
-सुशीला शिवराण (श्योराण)
वाह ………बहुत खूब
ReplyDeleteआभार रचना की सराहना के लिए वंदना जी !
ReplyDeleteहम ज्वालामुखी हो गए !.....:)
ReplyDeleteहोना तो पहले ही चाहिये था .... :P
खैर !जब जागो तभी सवेरा .... :D
रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार विभा जी।
Delete:):) हर साल उपमाएँ बदल जाती हैं ...
ReplyDeleteसही कहा संगीता जी । भावनाओं के समरूप ही उपमाएँ बदल जाती हैं। रचना का संज्ञान लेने के लिए हार्दिक आभार।
Deleteवाह ....बहुत बढ़िया ...!!:))
ReplyDeleteहर घड़ी आपके इकरार बदल जाते हैं ...!!
super
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद संगीता जी।
Deleteसमय अनुसार बदलती हैं उपमाएं और अलंकार संबोधन के ...
ReplyDeleteपर प्रेम एक सा ही रहता है ...
प्यार वही रहता है....कभी खट्टा तो कभी मीठा !
Deleteसही कह रहे हैं दिगंबर जी।
…बहुत खूब..सुन्दर उपमाए..
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी से बेहतर लिखने की प्रेरणा मिलती है। आभार महेश्वरी जी।
Deleteहाय हम क्या से क्या हो गये !
ReplyDeleteअलंकारों के बिम्ब को खूबी से अभिव्यक्त करती रचना !
जो क्या से क्या ना बना दे वो कैसा रिश्ता और कैसा प्यार वाणी जी ! आपकी सराहना के लिए हार्दिक आभार।
Deleteधन्यवाद यशवंत जी।
ReplyDeleteनये प्रतीकों से रचित भावपूर्ण रचना आभार
ReplyDelete