वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday, 27 April 2013

अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो




रह-रह कानों में
पिघले शीशे-से गिरते हैं शब्द
"
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो"।

ज़हन में 
देती हैं दस्तक
घुटी-घुटी आहें, कराहें
बिटिया होना
दिल दहलाने लगा है
कितने ही अनजाने खौफ़
मन पालने लगा है
मर्दाने चेहरे 
दहशत होने लगे हैं
उजाले भी 
अंधेरों-से डसने लगे हैं !

बेबस से पिता
घबराई-सी माँ
कब हो जाए हादसा
न जाने कहाँ !

कुम्हला रही हैं
खिलने से पहले
झर रही हैं
महकने से पहले
रौंद रहे हैं
मानवी दरिंदे
काँपती हैं 
ज्यों परिंदे
अहसासात
मर गए हैं
बेटियों के सगे
डर गए हैं।

-
शील

चित्र - साभार गूगल

Sunday, 14 April 2013

प्रेम



प्रेम

अनजानी राहों से
दरिया, पर्वतों को लांघ
चला ही आया
तुम्हारा प्रेम।

चुपके-से अँधेरे को चीर
नींद से कर वफ़ा के वादे
आ बैठा सिरहाने
सहलाता रहा केश
चूम ही लिया
मुँदी पलकों को
बिखरी अलकों में
उलझ गए तुम्हारे नैना।

होठों की जुंबिश
बुलाती रही तुम्हें
और तुम
निहारते ही रहे
मेरे चेहरे के दर्पण में
अपनी ही छवि !

- शील