रह-रह कानों में
पिघले शीशे-से गिरते हैं शब्द
"अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो"।
ज़हन में
देती हैं दस्तक
घुटी-घुटी आहें, कराहें
बिटिया होना
दिल दहलाने लगा है
कितने ही अनजाने खौफ़
मन पालने लगा है
मर्दाने चेहरे
दहशत होने लगे हैं
उजाले भी
अंधेरों-से डसने लगे हैं !
बेबस से पिता
घबराई-सी माँ
कब हो जाए हादसा
न जाने कहाँ !
कुम्हला रही हैं
खिलने से पहले
झर रही हैं
महकने से पहले
रौंद रहे हैं
मानवी दरिंदे
काँपती हैं
ज्यों परिंदे
अहसासात
मर गए हैं
बेटियों के सगे
डर गए हैं।
- शील
चित्र - साभार गूगल
पिघले शीशे-से गिरते हैं शब्द
"अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो"।
ज़हन में
देती हैं दस्तक
घुटी-घुटी आहें, कराहें
बिटिया होना
दिल दहलाने लगा है
कितने ही अनजाने खौफ़
मन पालने लगा है
मर्दाने चेहरे
दहशत होने लगे हैं
उजाले भी
अंधेरों-से डसने लगे हैं !
बेबस से पिता
घबराई-सी माँ
कब हो जाए हादसा
न जाने कहाँ !
कुम्हला रही हैं
खिलने से पहले
झर रही हैं
महकने से पहले
रौंद रहे हैं
मानवी दरिंदे
काँपती हैं
ज्यों परिंदे
अहसासात
मर गए हैं
बेटियों के सगे
डर गए हैं।
- शील
चित्र - साभार गूगल