वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday, 15 September 2012

क्या होली क्या ईद !



हर लमहा काबिज वो खयालों पर 
अब भाए न कुछक्या होली क्या ईद ! 

अंधेरों से निकल रोशनी में आ जाओ

तकते राह उजालेक्या होली क्या ईद !

आज भी दिल है उसकी मुहब्बत का मुरीद

सनम की बेवफ़ाईक्या होली क्या ईद !

हम उसे चाहें हमारी नादानियाँ हैं

वो देखें न मुड़ केक्या होली क्या ईद !

जला दिलेनादां बहुत इश्‍क हुआ धुँआ-धुँआ

लगाए हैं राख दिल सेक्या होली क्या ईद !


-सुशीला श्योराण

चित्र : साभार गूगल

9 comments:

  1. कविता में प्रतीक्षा का भाव उभर कर आया है. बढ़िया.

    ReplyDelete
  2. आज भी दिल है उसकी मुहब्बत का मुरीद
    सनम की बेवफ़ाई; क्या होली क्या ईद ..

    वाह क्या बात है ... उनकी बेवफाई से हमारी मुहब्बत में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला ...

    ReplyDelete
  3. हर अँधेरे के बाद ही उजाला है ...

    ReplyDelete
  4. sahi bat dil men chain ho tabhi kuch accha lagta hai ...

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर..सुशीला जी..

    ReplyDelete
  6. बहुत ही बढ़िया सुन्दर रचना है

    ReplyDelete