हर लमहा काबिज वो खयालों पर
अब भाए न कुछ, क्या होली क्या ईद !
अंधेरों से निकल रोशनी में आ जाओ
तकते राह उजाले, क्या होली क्या ईद !
आज भी दिल है उसकी मुहब्बत का मुरीद
सनम की बेवफ़ाई; क्या होली क्या ईद !
हम उसे चाहें हमारी नादानियाँ हैं
वो देखें न मुड़ के, क्या होली क्या ईद !
जला दिलेनादां बहुत इश्क हुआ धुँआ-धुँआ
लगाए हैं राख दिल से, क्या होली क्या ईद !
-सुशीला श्योराण
चित्र : साभार गूगल
कविता में प्रतीक्षा का भाव उभर कर आया है. बढ़िया.
ReplyDeleteआज भी दिल है उसकी मुहब्बत का मुरीद
ReplyDeleteसनम की बेवफ़ाई; क्या होली क्या ईद ..
वाह क्या बात है ... उनकी बेवफाई से हमारी मुहब्बत में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला ...
हर अँधेरे के बाद ही उजाला है ...
ReplyDeletebahut sundar ...
ReplyDeleteshubhkamnayen ...
sahi bat dil men chain ho tabhi kuch accha lagta hai ...
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर..सुशीला जी..
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ....
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सुन्दर रचना है
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