वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Thursday, 5 September 2013

मृत्तिका


अनगढ़
एक आकार
एक पहचान
पाने को आतुर
पा कुम्हार का
स्नेहिल स्पर्श
हुई समर्पित
ढली उत्कृष्‍ट प्रतिमा में
मृत्तिका अनुगृहीत
कुम्हार प्रफ़ुल्लित
जग मोहित ।

बोली मृत्तिका -
मैं, मैं कहाँ
जैसे ढाला, ढली हूँ
कुम्हार की प्रतिभा
उसी की कृति हूँ ।

बोला कुम्हार -
न होती तुम गुणग्राही
तो मेरी प्रतिभा
फिरती मारी-मारी
मेरी लगन, मेरा सृजन
मैं जो तुममें ढला हूँ
लोच थी तुम्हारी
मेरे स्पर्श को
अप्रतिम कर गई
आज तुम पहचान मेरी
इससे बड़ी
और क्या तुष्‍टि मेरी !


- शील

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    गुरूजनों को नमन करते हुए..शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ।
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (06-09-2013) के सुबह सुबह तुम जागती हो: चर्चा मंच 1361 ....शुक्रवारीय अंक.... में मयंक का कोना पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपको नमन और ह्रदय से आभार ।

      Delete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    कृपया आप यहाँ भी पधारें और अपने विचार रखे धर्म गुरुओं का अधर्म की ओर कदम ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः13

    ReplyDelete

  3. आभात तुषार जी ।

    ReplyDelete
  4. तहे दिल से शुक्रिया अरूण ।

    ReplyDelete
  5. धन्यवाद कालीप्रसाद जी !

    ReplyDelete
  6. कमाल की रचना

    ReplyDelete
  7. सुन्दर गुरु शिष्य सम्बन्ध .....नमन वंदन !

    ReplyDelete
  8. दोनों का ही महत्त्व है ... गुरु का मार्ग ओर विद्यार्थी का ग्रहण करना ... दोनों ही जरूरी हैं शीर्ष तक जाने के लिए ...

    ReplyDelete