उजली चाँदनी रातें
शीतल स्नेह की बरसातें
हवेली का वो चौक
चौक में सटी चारपाइयाँ
१२-१३ भाई-बहनों संग
होती खूब चुहलबाजियाँ
रूठने-मनाने की वो बातें
याद आती हैं ...............
हवेली के भीतर का चौक
स्त्रियों, बच्चों का साम्राज्य
दिन भर की थकान के बाद
उनींदी माँ, काकी, ताइयाँ
कोई सुनाती कहानियाँ
कोई लाडो की मनुहार पर
पिरोती गीतों की लड़ियाँ
गीतों की वो तान
याद आती है .................
चूल्हे थे चार
कैसा ये न्यारपन
भूख लगी
जहाँ रोटी पहले सिंकती
दही-कटोरा हाथ ले
बच्चों की महफ़िल
वहीँ जमती
बड़े अधिकार से
"पहले मैं" लड़ते थे
वो मीठी लड़ाइयाँ
याद आती हैं ...............
ईमली पर चढ़
कटारे तोड़ना
चठ्कारे ले
दावत उड़ाना
पनघट की मुंडेर
"छू ले " पुकारना
अलस दोपहरी
चोपड़ सजाना
गुड़िया की चूनर
गोटा लगाना
गुड्डे की बारातें
याद आती हैं ...........
सावन में झूलना
मोर ज्यूँ दिल का नाचना
बारिश में नहाना
गीली, सौंधी रेत
देर तक घरौंदे बनाना
लाल, रेशमी तीज ढूँढना
उजले आसमां में
इन्द्रधनुष खोजना
"मेरै मामै की धनक "
खिलकर पुकारना
इन्द्रधनुष के वे रंग
याद आते हैं .................