वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday, 23 February 2013

ए मौत के सौदागर



वहाँ..........
वो लाश जो खून से लथपथ पड़ी है
बम के छर्रों ने नहीं छोड़ा पहचान के काबिल
उड़ा दिए हैं शरीर के पर्खच्‍चे
बाँया हाथ कहीं दूर जा गिरा है
शेष झुलसे, खून से सने अवयव   
देते हैं तुम्हें चुनौती
पहचान सको तो पहचानो
कौन था मैं
हिन्दू, मुसलमान या क्रिस्तान
नहीं पहचान सके ना?

कैसे पहचानते?
धर्म की सतह पर तैरते शैवाल जो हो
बन चुके हो अमरबेल
एक श्राप
अपने आश्रय का काल
इंसानियत, धर्म पर कलंक
क्योंकि     
धर्म तो जीने की राह सिखाता है
जीवन नहीं छीनता
मौत नहीं बाँटता !

मैं एक गरीब पिता था 
दो जून की रोटी को जूझता
दिलसुख नगर की सब्ज़ीमंडी में
बेच रहा था फल
कल की रोटी के लिए
तुम्हारे बच्‍चों के स्वास्थ्य के लिए
तुम्हारी धर्मांध दरिंदगी ने
छीन ली एक बूढ़ी माँ से उसकी लाठी
एक गरीब बीवी से उसका पति
मासूम बच्‍चों से उसका पिता
उजड़ गई गृहस्थी
उजड़ गए सपने।

चंद लाशें बिछाकर
दहशत के कारोबार से
क्या हुआ हासिल
बोल मौत के सौदागर
ए काफ़िर !

सुन कायर
कभी ला अपनी माँ को
दिखा अपनी करतूत
जलती लाशें, तड़पते ज़िस्म
फिर देख
कैसे रोएगी उसकी ममता
होगी उसकी कोख शर्मसार
नहीं कर पाएगी तुझसे प्यार
नहीं माँग सकेगी तेरी लंबी उम्र की दुआ

दिखा अपनी बहन को
ये सिहरा देने वाली जलती लाशें
तेरे अट्‍टहास उसकी आँखों से आँसू बन झरेंगे
तेरी हँसी से नफ़रत हो जाएगी उसे
तुझे भाई कहते रो देगा उसका दिल!

सुन ए दहशतगर्द !
क्या दिया तूने
अम्मी की आँखों में आँसू
अब्बू को शर्मिंदगी
इंसानियत को कराह
छोड़ यह राह
यह सवाब नहीं
दोजख की ओर जाती है
बन सकता है तो बन
अम्मी, अब्बू का गुमान
बीवी के चेहरे का नूर
हर चेहरे की खुशी
इसी में तेरी मुक्‍ति।

-सुशीला शिवराण
शील’

Sunday, 17 February 2013

सुन कुदरत



सुन कुदरत
पा ली क्या
इंसानी फ़ितरत !
रूत बसंत
सावन की फ़ुहार
हाड़ गलाए
पौष-सी बयार
भाग ली धूप
ओलों की बौछार
पीली सरसों
करे मलाल
दहकते टेसू
हुए हलाल।

कहे प्रकृति -
सुन मानव !
सब तेरी करतूत
दिया प्रदूषण
रोग भीषण
रूग्ण मेरी काया
कैसे चलूँ
सधी चाल

किया
 तूने बेहाल।

अब भी संभल
कर जतन
उगा दरख़्त
कानून सख़्त
गंगा दूषित
यमुना गंदली
मैं ऊसांसी
हुई रूआंसी
कैसी ये आफ़त
जी की साँसत
किया हताहत
दे कुछ राहत
अब भी संभल
सँवार कल।

- शील


चित्र : साभार गूगल


Thursday, 14 February 2013

बसंत पंचमी हाइकु


Valentine’s Day और बसंत पंचमी आप सबको मुबारक -

१)
प्रणय पाती
लाए हैं ऋतुराज
साथ गुलाब।

२)
पुष्‍प-शृंगार
मदन आलिंगन
उन्मत्त धरा।

३)
फूलों की भेंट
लाए कुसुमाकर
सर्दी समेट।

४)
आम्रकुंज में
कुहुकी कोयलिया
आया बसंत।

५)
फूले पलाश
फूल गई सरसों
छाया उल्लास।

६)
आया बसंत
सज गई धरणी
विदा हेमंत।

- शील


Monday, 4 February 2013

ज़िंदगी की बही



ज़िंदगी की बही में
क्या करें दर्ज़
खुशियाँ या दर्द
चुनिए सोच कर
क्योंकि
जब पलटेंगे पन्ने
जीएँगे हम
बार-बार
हज़ार बार
उन्हीं पलों को
दे जाएँगे जो
मुस्कान अधरों को
या फिर
आँसू नयनों को
-
शील

चित्र : साभार गूगल

Saturday, 2 February 2013

जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल - २०१३ में एक वक्‍ता की हैसियत से भागीदारी करने का सुअवसर मिला। पेश हैं कुछ झलकियाँ -


फ़हमीदा रियाज़ जी, मैं, नंद भारद्वाज सर और लक्ष्‍मी शर्मा जी 
डॉ सरस्वती माथुर, श्री जे.एल. माथुर, रामबाग पैलेस



बाँए से नंद भारद्वाज सर की प्रशंसक, नंद भारद्वाज सर, प्रीता भार्गव जी, सरस्वती जी और मैं

शबाना जी हमारे पहले सत्र "अधूरा आदमी, अधुना नारी" में सवाल उठाते

सत्र "अधूरा आदमी अधुना नारी" में दाँए से अनामिका जी, फ़हमीदा रियाज़ जी, प्रीता भार्गव जी, मैं और क्षमा शर्मा जी



जावेद साहब हमारे सेशन में अपनी बात रखते हुए, सफ़ेद स्वेटर में अंबई


Welcome dinner with Javed saab at Rambagh Palace, Jaipur
सत्र "स्‍त्री हो कर सवाल करती हो"  के दौरान विमर्श करते हुए

सत्र "स्‍त्री हो कर सवाल करती हो"  के दौरान विमर्श करते हुए

डिग्गी पैलेस में हमें भी पगड़ी पहनने का सम्मान मिला। बाएँ से नंद भारद्वाज सर, प्रेमचंद गांधी जी, मैं, श्रीमती मधु गांधी और उनकी बिटिया रानी