अक्सर याद आती है मुझे सन सत्तावन की लड़ाई
जब आसमां पर आज़ादी की बिजली थी कौन्धियाई
याद कर उस वीरांगना की तरुण,तेज़,तलवार की धार
आँखों से झर-झर आँसू झरे; बही अनवरत अश्रु-धार !
उसके बाद शहीदों की है लम्बी एक कतार
जिसमे प्रमुख बापू ,तिलक,गोखलेऔर सरदार
सुभाषचंद्र, भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जिनकी मेरे सीने में, अब भी हैं अमिट याद !
किस-किस का मैं नाम पुकारूं ?
अनगिनत थे वे मेरे सपूत हज़ारों
अनगिनत थे वे मेरे सपूत हज़ारों
जिन्होंने अपना रक्त बहाकर, किया जटिल काम महान
स्वर्णिम अक्षरों में लिख गए; मेरी आज़ादी का फरमान !
आज़ादी की ख़ुशी में नाच उठा मेरा अंग-अंगकिन्तु शीघ्र ही जैसे; मेरा स्वपन हुआ भंग !भ्रमित, अचंभित, नि:शब्द मैं ; थी ये सोच रही भाई-भाई में द्वेष, नफ़रत ये कैसी पनप रही ?
आज़ादी की ख़ुशी में नाच उठा मेरा अंग-अंगकिन्तु शीघ्र ही जैसे; मेरा स्वपन हुआ भंग !भ्रमित, अचंभित, नि:शब्द मैं ; थी ये सोच रही भाई-भाई में द्वेष, नफ़रत ये कैसी पनप रही ?
हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई
भेदभाव की क्यों दीवारें उठ आईं ?
मंदिर, मस्जिद, गिरजा और गुरुद्वारा
श्रद्धा नहीं अब हथियारों का बने जखीरा !
जब भी किसी का खून है बहतामाँ का सीना चीत्कार उठता उन अमर वीरों की कुर्बानी न व्यर्थ गँवाओदीवानों अब भी; कुछ तो होश में आओ ?
जब भी किसी का खून है बहतामाँ का सीना चीत्कार उठता उन अमर वीरों की कुर्बानी न व्यर्थ गँवाओदीवानों अब भी; कुछ तो होश में आओ ?
माँ भारती के दिल की धड़कन तो पहचानो !
मेरी ही काया के भिन्न अंग हो तुम ये जानो
खंडित होकर तुम, केवल विनाश को पाओगे
नासमझो फिर से अपनी आज़ादी भी गँवाओगे !
धर्म,जाति,सम्प्रदायों में बँटकर, टूट और मिट ही जाओगे हिंसा, आंतक के सागर में; प्रेम और बंधुत्व कहाँ पाओगे?धर्म के नाम मौकापरस्तों ने सदा; दिए वो घाव, ऐसी टीसस्वर्णमंदिर, बाबरी, रथयात्रा; निरंतर वेदना रही है रिस !
धर्म,जाति,सम्प्रदायों में बँटकर, टूट और मिट ही जाओगे हिंसा, आंतक के सागर में; प्रेम और बंधुत्व कहाँ पाओगे?धर्म के नाम मौकापरस्तों ने सदा; दिए वो घाव, ऐसी टीसस्वर्णमंदिर, बाबरी, रथयात्रा; निरंतर वेदना रही है रिस !
पाकिस्तान, बांग्लादेश; तो कभी सुगबुगाए खालिस्तान
निरंतर कश्मीर सुलगे, बोडो दह्काएँ मेरा शांत आसाम
कभी मराठा हिंसक हो लें; कभी नक्सल बर्बर हो लें
आतंकवाद कहर ढाए; दिल्ली, जयपुर, मुंबई दहलें !
कब तक नफ़रत, हिंसा, लहू, लाशें और विनाश ?
निर्माण की बातें करो, होने दो प्रगति और विकास
सहत्र कोटि बाहुबल, अब प्रगति-पथ पर डाल दोअतुल्य भारत को, नव-प्रभात, सुबह-सवेरा दो !
शस्य श्यामल धरा को, प्यार से सुवासित करो
वात्सल्य से सींचो, देश-प्रेम से पोषित, सुदृढ़ करो
गूंजें वेदवाणी, अज़ान, शबद, हिं (hymn)फिर से यहाँ
विज्ञान-तकनीक से समृद्ध,ऐसी अनुपम धरा कहाँ !
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