आभार
आपकी बाहों ने पालना बन झुलाया मुझे
हाथों ने स्नेहिल थपकी दे, सुलाया मुझे
ग्रन्थ,फौज, वीर-वीरांगनाओं की विरुदावली
भोर हुए भजनों की,गूंजे कंठ से स्वर-लहरी
पढ़ाई हो, अन्य क्रिया-कलाप या खेल-कूद
दिया सम्बल सर्वदा, हौंसला हमेशा अकूत
सीमित साधनों में, दिया असीम स्नेह मुझे
बेटी नहीं, बेटा बनाकर; आपने पाला मुझे
अनुशाशन और सच्चरित्र की दी दीक्षा मुझे
आत्म-विश्वासी, निडर होने की शिक्षा मुझे
कर्म और सच्चाई का न छोड़ना कभी साथ
ईश्वर का आशीष सदा रहेगा तुम्हारे साथ
आपके आदर्शों पर चल, मैंने तो जीना सीखा
आप-सा ही निर्मल ह्रदय, प्यार बाँटना सीखा
सफलता और सम्मान खूब पाया जग में
आपके स्नेह; शिक्षा की लिए लौ मन में
टिपण्णी - यहाँ मैं ये बताना चाहूंगी कि मेरे पिता का नाम श्री ईश्वर सिंह है| तीसरे पद्यांश की चौथी पंक्ति में ईश्वर से मेरा अभिप्राय परम पिता परमे्श्वर और मेरे पिता दोनों से है | अतः यहाँ शलेष अलंकार हुआ |
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