मुझे सँवारे
क्यों आतुर हैं शब्द कागज़ पर उतर आने को
हर बंदिश तोड़ उन्मुक्त,प्रफुल्ल हो जाने को !
सावन में ज्यों नाचे मोर,घिरें जब बदरा कारे
कातर पपीहा कानन में ज्यों पिहू-पिहू पुकारे !
कातर पपीहा कानन में ज्यों पिहू-पिहू पुकारे !
तपती-झुलसती रेत तरसे रिमझिम बौछार को
उन्मादी तरिणी बेचैन सागर की थाह पाने को !
उन्मादी तरिणी बेचैन सागर की थाह पाने को !
स्वाति-जल अभिलाषी चातक कारे घन निहारे
चकोर अपने चाँद को; एकटक, मगन निहारे !
काग़ज़-कश्ती हाथ लिए खोजें किसी तलैया को
कटी पतंग पीछे भागें ज्यों जीवन-पूँजी पाने को
ये कौन है जो हौले से दस्तक दे; मुझे पुकारे
मरू में बरखा बन आये, लह्काए मुझे सँवारे
सुंदर भावों से सजी रचना.
ReplyDeleteभूषणजी
ReplyDeleteआपको मेरे भाव, मेरे शब्द अच्छे लगे, शुक्रिया |
सुशीला
क्यों आतुर हैं शब्द कागज़ पर उतर आने को
ReplyDeleteहर बंदिश तोड़ उन्मुक्त,प्रफ्फुल हो जाने को !
kitne sunder sabdo me sajaya hai aapne apne alfajo ko, badhai ...........
Thank you Amrendraji.
ReplyDeleteAap ne blog p..Achi writing ki Hai
ReplyDeleteAap Apna blog template change kar d
Acha template set kare.
सुंदर भावों से सजी रचना.
KiTne Sunder sabdo me Ssjaya Hai Aapne Alfajo ko........
nice work..
best lack...