यौवन की दहलीज़ पर कदम रखते ही
विवाह के प्रस्ताव आने लगे
विवाह के प्रस्ताव आने लगे
कपोलों पर लाल रंग छिटकाने लगे
दिल में देशभक्ति की भावना थी
जिसके अनुरूप फौजी की कामना थी
विधाता का फिर अनुग्रहण हुआ
इन संग हमारा पाणिग्रहण हुआ
ससुरजी नौसेना में अधिकारी थे
इन संग हमारा पाणिग्रहण हुआ
ससुरजी नौसेना में अधिकारी थे
मुंबई, NOFRA के वासी थे
हम भी परिवार का अभिन्न अंग थे
इसीलिए पति सहित सबके संग थे
हम भी परिवार का अभिन्न अंग थे
इसीलिए पति सहित सबके संग थे
इक दिन पड़ोसिन मैडम आईं
पूछा - इनकी Rank क्या है ?
पूछा - इनकी Rank क्या है ?
हमारा तत्काल उत्तर था -
Chief EAP हैं
Chief EAP हैं
उनकी मुखमुद्रा बदली
यानी कि sailor हैं !
"sailor हैं " यूँ कहा ज्यूँ गाली हो
हमें लगा जैसे वे बुद्धि से खाली हों
फ़ौजी हीनता, नफरत का पात्र हो नहीं सकता
वतनपरस्त कभी हेय, कमतर हो नहीं सकता !
ख़ैर
हमें लगा जैसे वे बुद्धि से खाली हों
फ़ौजी हीनता, नफरत का पात्र हो नहीं सकता
वतनपरस्त कभी हेय, कमतर हो नहीं सकता !
ख़ैर
उनका व्यंग्यबाण हृदय को बेंध गया
हमारे स्वाभिमान को रौंद गया
हमारे स्वाभिमान को रौंद गया
मन चीत्कार कर उठा -
क्या हम, हम नहीं छाया भर हैं
बिन दिल-दिमाग काया भर हैं ?
मन ने तुरंत प्रतिकार किया
हम भी वाणिज्य स्नातक हैं
अपनी पहचान बनाने काबिल हैं
हमारे आत्म-सम्मान ने दृढ़संकल्प लिया
खुद को बी.एड; श्रमभट्टी में झोंक दिया
परिस्थितियाँ थीं मुश्किल, बड़ी विकट
किन्तु कुछ कड़ा था अपना भी जीवट
इधर दो नन्हे बेटे, उधर महाविद्यालय
खूब हुई खींचतान, किताबें या आलय ?
भूख, नींद , आराम सब भुलाया
किताबों संग बच्चों को बहलाया
बीवी, माँ और विद्यार्थी बनकर
कुंदन बनना था,आग में तपकर
श्रम-भट्टी से हम जब तपकर निकले
श्रेष्ठ ट्रेनी-टीचर, बी.एड होकर निकले
अब जब भी कोई मैडम शाला पधारतीं
बड़े अदब से हमें भी मैडम कह पुकारतीं
हमें अपनी इस पहचान पर बड़ा मान है
दृढ़-संकल्प और परिश्रम पर अभिमान है !
Note : The short forms used in the poem stand for -
NOFRA : Naval Officer's Flats Restricted Area
Chief EAP - Chief Electrical Artificer Power ( An equal lent rank in the army is Junior Commissioned Officer)
NOFRA : Naval Officer's Flats Restricted Area
Chief EAP - Chief Electrical Artificer Power ( An equal lent rank in the army is Junior Commissioned Officer)
adbhut,rachana h,isi karan aap adrash shikshka h.
ReplyDeletebrijesh sharma
Thank you Brijeshji. You are always very appreciative and supportive. :)
ReplyDeleteMa'am, a brilliant poem....
ReplyDeleteExplains the struggle of your life and the questions you faced....
Many a times people don't realize...
They get into ranks and think the higher the rank the higher their status...
But they don't realize.... The real true patriotism lies in the man who fights at the border, not the navy chief who sits in an office who commands...
Real heroes are those who risk their lives at the stormy seas, and dare to face to bullets at the line of fire...
Jai jawan and jai Kisan...
It's only because of them that we live in our country safe.. They should be respected even more than any one else!
Encouraging poem ma'am... Proves that any adversity can be overcome by determination and zeal and vigour!!! :D
प्रिया मेधा
ReplyDeleteमैं तुम्हारे शब्द पढ़कर निशब्द हूँ ! इतनी अल्प आयु में इतनी परिपक्व सोच? इतने उच्च-पदस्थ प्रशाशनिक अधिकारी की बेटी और इतनी विनयशीलता ! धन्य हैं तुम्हारे माता-पिता जिन्होंने अपने बच्चों को इतने सुंदर संस्कार दिए ! ये तुम्हारा ज्ञान और अपने नाम को सार्थक करती तुम्हारी मेधाशक्ति है कि तुम इतने उच्च विचारों की धनी हो | मेरा सौभाग्य कि मुझे तुम जैसी विद्यार्थी मिली | मुझे और देश को तुमसे बहुत आशाएँ हैं | ईश्वर सदा तुम्हारा पथ-प्रशस्त करे, तुम्हें जहाँ भर की खुशियाँ दे !
असीम स्नेह और आशीर्वाद !
Ma'am went through your poems....they are touching, eye opening and introduce you to the true reality of this world...great poems :)
ReplyDeleteकल 2/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण |बधाई
ReplyDeleteआशा
bhaavpur rachna...
ReplyDeleteबढ़िया रचना...
ReplyDeleteआगामी ५ सितम्बर की सादर बधाई...
अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबेहतरीन ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अपनी पहचान बनने की जिजीविषा ..बहुत खूब
ReplyDeleteशिक्षक दिवस पर अग्रिम कोटि कोटि सादर अभिन्दन ...आप सदा प्रेरणादायी हों जय हो !!!
कृपया अपने ब्लॉग में समर्थक / मित्रों के लिए लिंक बनायियेगा
ReplyDeleteजिससे आपके लेख/ रचना को सरलता पूर्वक पढ़ा जा सके ..
सादर !!!
आपने भावनाओंको सहज प्रवाह
ReplyDeleteमें सुत्रबद्ध किया है। अच्छा लगा।
बहुत सुंदर और भावप्रवण कविता. श्रम भट्टी में तपना और दूसरों के भी काम आना- यही टीचर की गरिमा है.
ReplyDeletebahut achchha likha hai sushila ji bdhai !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,सार्थक और प्रेरक लगा आपको पढकर.
ReplyDeleteईश्वर आपको सदा सफलता की बुलंदियों पर पहुंचाए.
आप सबका प्रेरणा स्रोत हों,यह दुआ करता हूँ.
भूख, नींद , आराम सब भुलाया
ReplyDeleteकिताबों संग बच्चों को बहलाया
बीवी, माँ और विद्यार्थी बनकर
कुंदन बनना था,आग में तपकर.... वाह , पर
फ़ौजी हीनता, नफरत का पात्र हो नहीं सकता
वतनपरस्त कभी हेय, कमतर हो नहीं सकता- सच है