वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Sunday, 29 January 2012

चर्चे...........


थोड़ा कम है !

नेकनामी के बहुत हैं हमारे चर्चे
उघड़ें परतें, सरे आम हो जाएँ चर्चे

सनद और काबिलियत की कमी कहाँ
इम्तिहां में हमने खूब चलाए पर्चे

न मिली हमें शोहरत ज़रा भी
न पूछो कितने छपवाए पर्चे

नाते-रिश्ते,ब्याह,भात,उठावणी
कैसे-कैसे हमने निभाए खर्चे

यूँ तो हममें है ईमानदारी बहुत
दुनिया की रीत हम भी निभाएँ अगर्चे

-सुशीला श्योराण

चित्र : आभार गूगल


गज़ल के रूप में ये कुछ यूँ ढल गई -



शहर में नेकी के बड़े हमारे चर्चे
सरका नकाब, हुए आम हमारे चर्चे

सनद और होशियारी की मिसाल हम
ये हैं फ़र्ज़ी, ऎसे हुए हमारे चर्चे 

खुदाया ना मिली हमें शोहरत ज़रा 
हरसू इश्तिहार ना हुए हमारे चर्चे

तीज़-त्योहार,ब्याह-सगाई,उठावना
खोला किए खज़ाने ,  हुए हमारे चर्चे

यूँ तो है ज़ज़्बा--ईमानदारी बहुत
रिश्वतखोरी के आम हुए हमारे चर्चे

-सुशीला श्योराण 

Thursday, 26 January 2012

मैं बंकर हूँ

यूँ तो बंकर एक शिलाखंड या प्रस्तर समूह मात्र है –निष्प्राण, मूक जो सदियों से सरहद पर फ़ौज़ियों की हिफ़ाज़त करता आया है किन्तु जब यह अपनी कहानी कहता है तो -





मैं बंकर हूँ
बसती है मुझमें
मुहब्ब्त वतन की
साँस लेता है हरदम
जूनून वतनपरस्ती का
सदियों से मैंने
नहीं देखी रात !

हर पल चौकन्ना
हर आहट पर सतर्क
नहीं झपकता पलकें
नहीं होता उनींदा
क्योंकि
सिर्फ़ एक पल
और लाश में तब्दील
मेरा बाशिंदा !

नहीं देख सकता
बुझती आँखें
बीवी और बिटिया की
तस्वीर थामे
डूबती साँसें
बूढ़े माँ-बाप से
माफ़ी माँगें !

अडिग पहाड़ों पर
अडिग मेरे इरादे
मैंने भी खुद से
कुछ किए हैं वादे
जिस सरज़मीं ने
दी है पनाह
उसकी हिफ़ाज़त में
होना है फ़ना !

आती है कयामत आ जाए
अरि दल मुझ पर चढ़ जाए
तोप, गोलियों से
धरा पट जाए
लूँगा हर वार
मैं सीने पर
न आने दूँगा आँच
इसकी आन पर!

दूँगा मौत को मात
इसी हौंसले पर
पत्थर हूँ
क्या हुआ?
वतनपरस्त हूँ
इसांन की तरह
गद्दार नहीं हूँ
काले धन का
बैठ कुर्सी पर
मैं करता 
व्यापार नहीं हूँ !
नहीं करता
मैं घोटाले
उजली पोशाक
दिल काले !

मैं बंकर हूँ
खड़ा रहूँगा अडिग
जब तक
मेरा आखिरी पत्थर
ध्वस्त न हो जाए
मिटा अपना अस्तित्व
माँ को अर्पण हो जाए
मिट जाए इस पर
इसी से लिपट जाए
मेरा हर कण
इस धरा को
समर्पण हो जाए
मैं बंकर हूँ !

-सुशीला श्योराण


चित्र - आभार गूगल

मेरा देश






गूँजे सर्व-दिश वेद वाणी

ऋषियों की अमृत वाणी


कर तिरंगे का अभिनंदन

शहीदों का हो नित वंदन



इस देश की माटी चंदन

दिल में प्रीत का स्पंदन


ईसा, वाहे गुरू, राम-रहीम

दिल में बसते श्याम-करीम


अनुपम धरा है अतुल्य देश
 

करनी है पूरी जो कमी शेष


भूखा बचपन ना बिलखे

खुशी हर आँगन किलके


साक्षर हों सब नर-नारी

नव प्रभात हो उजियारी



विज्ञान, तकनीक से उन्नत

लोक-कल्याण में हो प्रणत



पाये वही गौरव अतीत का

प्रणेता महान
संस्कृति का



सोने की चिड़िया कहलाए

खुशी घर-आँगन डेरा लगाए



विश्व-विजेता; अमन ले आए

उन्न्त प्यारा परचम लहराए



-सुशीला श्योराण

Saturday, 21 January 2012

प्रीत






आती है नव-बंसत लाती है प्रीत
फ़िर छोड़ दामन रूलाती है प्रीत

खिला मन-उपवन लहकाती है प्रीत
गाता है दिल, मन बहकाती है प्रीत

गुज़रते दिन-रात यूँ अब ख्वाबों में
वही खयालों में, भटकाती है प्रीत

करें गुफ़्तगू अगर तू पहलू में हो
खुदी से कह, यूँ भरमाती है प्रीत

बातों से भरती पिटारा दिन भर
मिले उससे तो शरमाती है प्रीत

पाकर उसे ज्यूं दुनिया पा लेती है 
खूब मन ही मन इठलाती है प्रीत

नज़दीकियाँ क्यूं ले जाती हैं दूर
ये वो तो नहीं, अकुलाती है प्रीत

न वो लगे अपना न जाए दिल से 
दिल में खलिश, तड़पाती है प्रीत


-सुशीला श्योराण


Saturday, 14 January 2012

तलाश






मिलें खुद से,पता कहाँ अपना
है तलाश, वज़ूद कहाँ अपना

टेढ़े-मेढे रास्ते चलते रहे
वही ना मिला सारा जहां अपना

गाजों,बाजों,बोलों के शोर में
गाये दिल जिसे गीत कहाँ अपना

सच्चाई इंसाफ़ की उम्मीद में,
खो गया बहुत अज़ीज़ यहाँ अपना

यूँ तो अपनों की यहाँ कमी नहीं,
सुन ले अनकही मीत कहाँ अपना

सुशीला श्योराण 



Saturday, 7 January 2012

कुहासा




फ़ैला कुहासा
चहुँ ओर धुन्ध
प्रकृति का उत्साह
पड़ गया है मंद

ये अलसाई-सी
सीली-सी दोपहर
मन पर पसरी
कोहरे की चादर


मन बुझा-बुझा
तन शीतल-सा
भीतर ही भीतर
कुछ घुटता-सा

प्रकॄति संग
जुड़ा तन-मन
पंच-तत्व की काया
कहाँ जुदा हम ?

खिलती हैं कलियाँ
गाता है मन
हर आपदा संग
उजड़ता है जन


प्रकृति है जीवनाधार
असंख्य इसके उपकार
दें हम भी प्रतिदान कुछ
जीवन अपना लें सँवार

-सुशीला श्योराण