यूँ तो बंकर एक शिलाखंड या प्रस्तर समूह मात्र है –निष्प्राण, मूक जो सदियों से सरहद पर फ़ौज़ियों की हिफ़ाज़त करता आया है किन्तु जब यह अपनी कहानी कहता है तो -
मैं बंकर हूँ
हर पल चौकन्ना
नहीं देख सकता
अडिग पहाड़ों पर
आती है कयामत आ जाए
-सुशीला श्योराण
चित्र - आभार गूगल
मैं बंकर हूँ
बसती है मुझमें
मुहब्ब्त वतन की
साँस लेता है हरदम
मुहब्ब्त वतन की
साँस लेता है हरदम
जूनून वतनपरस्ती का
सदियों से मैंने
नहीं देखी रात !
हर पल चौकन्ना
हर आहट पर सतर्क
नहीं झपकता पलकें
नहीं होता उनींदा
क्योंकि
सिर्फ़ एक पल
और लाश में तब्दील
मेरा बाशिंदा !
नहीं देख सकता
बुझती आँखें
बीवी और बिटिया की
तस्वीर थामे
डूबती साँसें
बूढ़े माँ-बाप से
माफ़ी माँगें !
अडिग पहाड़ों पर
अडिग मेरे इरादे
मैंने भी खुद से
कुछ किए हैं वादे
जिस सरज़मीं ने
दी है पनाह
उसकी हिफ़ाज़त में
होना है फ़ना !
आती है कयामत आ जाए
अरि दल मुझ पर चढ़ जाए
तोप, गोलियों से
धरा पट जाए
लूँगा हर वार
मैं सीने पर
न आने दूँगा आँच
इसकी आन पर!
दूँगा मौत को मात
इसी हौंसले पर
पत्थर हूँ
क्या हुआ?
वतनपरस्त हूँ
इसांन की तरह
गद्दार नहीं हूँ
काले धन का
बैठ कुर्सी पर
मैं करता
व्यापार नहीं हूँ !
व्यापार नहीं हूँ !
नहीं करता
मैं घोटाले
उजली पोशाक
दिल काले !
मैं बंकर हूँ
मैं बंकर हूँ
खड़ा रहूँगा अडिग
जब तक
मेरा आखिरी पत्थर
ध्वस्त न हो जाए
मिटा अपना अस्तित्व
माँ को अर्पण हो जाए
मिट जाए इस पर
इसी से लिपट जाए
मेरा हर कण
इस धरा को
समर्पण हो जाए
मैं बंकर हूँ !-सुशीला श्योराण
चित्र - आभार गूगल
अडिग पहाड़ों पर
ReplyDeleteअडिग मेरे इरादे
मैंने भी खुद से
कुछ किए हैं वादे
जिस सरज़मीं ने
दी है पनाह
उसकी हिफ़ाज़त में
होना है फ़ना !
bahut hi achhi abhivyakti
हार्दिक आभार रश्मि जी। आप सदा ही बेहतर लिखने को प्रेरित करती हैं।
Deleteशुसीला जी,...बहुत खूब....बहुत सुंदर प्रस्तुति,भावपूर्ण अच्छी रचना,..
ReplyDeleteWELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
धीरेन्द्र जी आपकॊ भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ....
Deleteप्रोत्साहन के लिए आभार
आपने तो गुगल के माध्यम से बंकर का चित्र प्रस्तुत किया है लेकिन जो जवान अपनी 19-से 20 वर्ष की उम्र में सशस्त्र सेनाओं में भर्ती होकर अपनी पूरी जिंदगी बंकर में गुजार देते है, उनसे ज्यादा इस बंकर की परिभाषा कोई नही दे सकता । मैं भी भारतीय वायु सेना में था । इस लिए आपकी कल्पनाएं कहीं न कहीं मुझे बीते वासर में ले कर चली जाती हैं । आप एक शिक्षिका हैं, इसलिए अनुरोध है कि मेरे पोस्ट "धर्मबीर भारती" पर समय मिले तो आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । नव वर्ष की अशेष शुभकामनाओं के साथ-- प्रेम सागर सिंह ।
ReplyDeleteप्रेम सरोवर जी ! मेरे पिता थल सेना, पति और ससुर जी नौ सेना और बेटा भी NDA की जिंदगी देख चुका है अत: बंकर केवल कल्पना नहीं! पापा (चीन युद्ध) और ससुर जी (पाकिस्तान युद्ध) में युद्ध का हिस्सा रहे हैं । मेरी धमनियों में भी एक फ़ौजी का ही रक्त प्रवाहित हो रहा है।
ReplyDeleteमैंने धर्मवीर भारती जी पर लिखा आपका लेख पढा था और टिप्पणी भी की थी प्रकाशित नहीं हुई होगी शायद। फिर देखती हूँ।
सादर
बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस पर बहुत कुछ लिखा गया..पढ़ा भी...
आपका नजरिया, आपकी लेखनी सबसे अलग और सार्थक लगी...
बधाई.
vidya जी आपने मेरी श्रद्धांजली सफ़ल कर दी। जब यह कविता लिखी तो शहीद ही थे मेरे मन में।
Deleteआपका हार्दिक आभार ।
इस विषय पर पहली बार कोई रचना पढ़ रही हूँ ..बहुत सशक्त अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप ( गीत )जी ! आप को बंकर की आत्मकथा ने प्रभावित किया, मुझे प्रसन्नता हुई।
Deleteआप के शब्द मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं। हार्दिक आभार
मैं बंकर हूँ
ReplyDeleteखड़ा रहूँगा अडिग
जब तक
मेरा आखिरी पत्थर
ध्वस्त न हो जाए
मिटा अपना अस्तित्व
माँ को अर्पण हो जाए
अपनी तरह की अनूठी और सबसे अलग कविता पढ़ने को मिली । बंकर की भावनाओं को आपने इस तरह व्यक्त किया है कि हर कोई इस कविता को बार बार पढ़ना चाहेगा।
सादर
आज 27/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
कुछ रचनाए वाह कहने के लिए नहीं होती वो सीधे आपके दिल में चोट करती है और पलकों के कोने भिगो जाती है ...ऐसी रचना के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद सोनल इस सुंदर शब्दों के लिए।
Deleteबेहद खुबसूरत और बेहतरीन अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया रीना जी ।
Deleteबंसतोत्सव की अनंत शुभकामनाऍं
ReplyDeleteजब सूत्रधार का आगमन बसंत पर हुआ है तो सब शुभ ही शुभ होगा ऐसी आशा है।
Deleteधन्यवाद।
देशप्रेम और राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत अच्छी कविता है, सुशीलाजी। बंकर को मानवीय जिजीविषा और संघर्ष के प्रतीक के रूप में आपने उन राष्ट्रीय और मानवीय आदर्शों को सच्ची वाणी देने का प्रयास किया है। आपको हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteवीथी’ में आपका स्वागत है नंद जी। मेरा प्रयास पसंद आया, मेरी रचना सफ़ल और मैं संतुष्ट हुई! सादर
ReplyDeleteदेश के रखवाले और देश को खाने वाले में अंतर करती बहुत सशक्त रचना.
ReplyDeleteआपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए अनेक धन्यवाद भूषण जी ।
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