मिलें खुद से,पता कहाँ अपना
है तलाश, वज़ूद कहाँ अपना
टेढ़े-मेढे रास्ते चलते रहे
वही ना मिला सारा जहां अपना
गाजों,बाजों,बोलों के शोर में
गाये दिल जिसे गीत कहाँ अपना
सच्चाई औ इंसाफ़ की उम्मीद में,
खो गया बहुत अज़ीज़ यहाँ अपना
यूँ तो अपनों की यहाँ कमी नहीं,
सुन ले अनकही मीत कहाँ अपना
- सुशीला श्योराण
बहुत सुन्दर रचना , बधाई.
ReplyDeleteशुक्रिया शुक्ला जी ।
Deleteवाह..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
धन्यवाद विद्या जी।
Deleteयूँ तो अपनों की यहाँ कमी नहीं,
ReplyDeleteसुन ले अनकही मीत कहाँ अपना...बहुत खूब
हौंसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया रश्मि जी ।
Deleteसच्चाई औ इंसाफ़ की उम्मीद में,
ReplyDeleteखो गया बहुत अज़ीज़ यहाँ अपना
बहुत ही बढ़िया मैम।
सादर
हार्दिक आभार यशवन्त जी ।
ReplyDeleteसच्चाई औ इंसाफ़ की उम्मीद में,
ReplyDeleteखो गया बहुत अज़ीज़ यहाँ अपना.बहुत खूब
आप ने पढ़ा और सराहा। तहे दिल से शुक्रिया निशा जी।
Deleteमिलें खुद से,पता कहाँ अपना
ReplyDeleteहै तलाश, वज़ूद कहाँ अपना
SUSHILA JI BAHUT HI MARMIK CHITRAN AP NE KIYA HAI ....HAR SHER LAJABAB BADHAI.
हार्दिक आभार नवीन जी ! आपने पढ़ा ही नहीं महसूस भी किया इस गज़ल को। यूँ ही हौसलाअफ़ज़ाई करते रहिएगा।
ReplyDeleteमेरा कमेन्ट लगता है स्पैम में चला गया,...
Deleteफिर से कमेन्ट किये देता हूँ,
बहुत सुंदर मार्मिक रचना बहुत अच्छी लगी...उम्दा पोस्ट
ReplyDeletenew post--काव्यान्जलि --हमदर्द-
सच्चाई औ इंसाफ़ की उम्मीद में,
ReplyDeleteखो गया बहुत अज़ीज़ यहाँ अपना
यूँ तो अपनों की यहाँ कमी नहीं,
सुन ले अनकही मीत कहाँ अपना
वाह वाह...प्रत्येक शेर उम्दा हैं... और लाजवाब भी...
मैं आपको मेरे ब्लॉग पर सादर आमन्त्रित करता हूँ.....
aapkee samvedsheelta rachna me dikh rahi hai...:)
ReplyDeleteमीत वही जो अनकही सुन ले. सच्ची बात. सुंदर रचना.
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