थोड़ा कम है ! |
नेकनामी के बहुत हैं हमारे चर्चे
उघड़ें परतें, सरे आम हो जाएँ चर्चे
उघड़ें परतें, सरे आम हो जाएँ चर्चे
सनद और काबिलियत की कमी कहाँ
इम्तिहां में हमने खूब चलाए पर्चे
इम्तिहां में हमने खूब चलाए पर्चे
न मिली हमें शोहरत ज़रा भी
न पूछो कितने छपवाए पर्चे
न पूछो कितने छपवाए पर्चे
नाते-रिश्ते,ब्याह,भात,उठाव णी
कैसे-कैसे हमने निभाए खर्चे
कैसे-कैसे हमने निभाए खर्चे
यूँ तो हममें है ईमानदारी बहुत
दुनिया की रीत हम भी निभाएँ अगर्चे
दुनिया की रीत हम भी निभाएँ अगर्चे
-सुशीला श्योराण
चित्र : आभार गूगल
गज़ल के रूप में ये कुछ यूँ ढल गई -
चित्र : आभार गूगल
गज़ल के रूप में ये कुछ यूँ ढल गई -
शहर में नेकी के बड़े हमारे चर्चे
सरका नकाब, हुए आम हमारे चर्चे
सनद और होशियारी की मिसाल हम
ये हैं फ़र्ज़ी, ऎसे हुए हमारे चर्चे
खुदाया ना मिली हमें शोहरत ज़रा
हरसू इश्तिहार , ना हुए हमारे चर्चे
तीज़-त्योहार,ब्याह-सगाई,उठावना
खोला किए खज़ाने , न हुए हमारे चर्चे
यूँ तो है ज़ज़्बा-ए-ईमानदारी बहुत
रिश्वतखोरी के आम हुए हमारे चर्चे
-सुशीला श्योराण
Bdhaai,shandar post hae.
ReplyDeleteआभार संगीता जी ।
Deleteगजब की गजल रची है मैम!
ReplyDeleteबेहतरीन
सादर
धन्यवाद यशवंत जी।
Deleteन मिली हमें शोहरत ज़रा भी
ReplyDeleteन पूछो कितने छपवाए पर्चे
:-)
बहुत खूब.
आपको हमारे चर्चे अच्छे लगे, शुक्रिया :)
Deleteन मिली हमें शोहरत ज़रा भी
ReplyDeleteन पूछो कितने छपवाए पर्चे ... maza aa gaya
रश्मि जी खुदा से यही दुआ है कि आप को हमारी रचनाएँ यूँ ही खुशी देती रहें!वो क्या है कि आप लोगों को खुश देखकर हमें बहुत खुशी होती है :)
Deleteन मिली हमें शोहरत ज़रा भी
ReplyDeleteन पूछो कितने छपवाए पर्चे
नाते-रिश्ते,ब्याह,भात,उठावणी
कैसे-कैसे हमने निभाए खर्चे
ये पर्चे - खर्चे के बाद चर्चे हो जाएँ तो समझो गनीमत है ...:):) अच्छी रचना
वाक़ई बजा फ़रमाया आपने संगीता स्वरुप ( गीत )जी !
Deleteपर्चे - खर्चे के बाद चर्चे हो जाएँ तो बहुत बड़ी गनीमत है !
फ़िलहाल तहे दिल से शुक्रिया।
बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति,...बहुत खूब सुशीला जी....
ReplyDeletewelcome to new post ...काव्यान्जलि....
तहे दिल से शुक्रिया @dheerendra जी ।
Deleteयूँ तो हममें है ईमानदारी बहुत
ReplyDeleteदुनिया की रीत हम भी निभाएँ अगर्चे
काबिलेतारीफ, वाह !!!!!
बहुत-बहुत शुक्रिया @अरूण कुमार जी।
Deleteलजवाब रचना.....
ReplyDeleteसराहनीय.......
क्या यही गणतंत्र है
बढ़िया पैरोडी बन पड़ी है. पैरोडी का अपना संसार और मज़ा होता है. बहुत खूब.
ReplyDeleteहार्दिक आभार भूषण जी
Deleteबहुत ही उत्कृष्ट रचना । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ! अवश्य पधारेंगे प्रेम सरोवर जी।
Deleteबहुत खूब ....!!
ReplyDeleteस्वागत आपका हरकीरत जी। आपकी रचनाएँ भी पढी हैं J.s. Parmar भाई सा कॊ facebook wall पर। बहुत सुंदर लिखती हैं आप ! बधाई और शुक्रिया
Deleteतीज़-त्योहार,ब्याह-सगाई,उठावना
ReplyDeleteखोला किए खज़ाने , न हुए हमारे चर्चे
यूँ तो है ज़ज़्बा-ए-ईमानदारी बहुत
रिश्वतखोरी के आम हुए हमारे चर्चे
suhila ji ab apki rachana ke to charche hi charche hain...khoobsoorat rachana ke liye sadar abhar ke sath badhai.
नवीन जी आपकी तारीफ़ के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
Deleteअनेक धन्यवाद।
ReplyDeleteन मिली हमें शोहरत ज़रा भी
ReplyDeleteन पूछो कितने छपवाए पर्चे
.बहुत बढ़िया ग़ज़ल है .