फ़ैला कुहासा
चहुँ ओर धुन्ध
प्रकृति का उत्साह
पड़ गया है मंद
ये अलसाई-सी
सीली-सी दोपहर
मन पर पसरी
कोहरे की चादर
मन बुझा-बुझा
तन शीतल-सा
भीतर ही भीतर
कुछ घुटता-सा
प्रकॄति संग
जुड़ा तन-मन
पंच-तत्व की काया
कहाँ जुदा हम ?
खिलती हैं कलियाँ
गाता है मन
हर आपदा संग
उजड़ता है जन
प्रकृति है जीवनाधार
असंख्य इसके उपकार
दें हम भी प्रतिदान कुछ
जीवन अपना लें सँवार
-सुशीला श्योराण
चहुँ ओर धुन्ध
प्रकृति का उत्साह
पड़ गया है मंद
ये अलसाई-सी
सीली-सी दोपहर
मन पर पसरी
कोहरे की चादर
मन बुझा-बुझा
तन शीतल-सा
भीतर ही भीतर
कुछ घुटता-सा
प्रकॄति संग
जुड़ा तन-मन
पंच-तत्व की काया
कहाँ जुदा हम ?
खिलती हैं कलियाँ
गाता है मन
हर आपदा संग
उजड़ता है जन
प्रकृति है जीवनाधार
असंख्य इसके उपकार
दें हम भी प्रतिदान कुछ
जीवन अपना लें सँवार
-सुशीला श्योराण
.शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
ReplyDeleteप्रकृति है जीवनाधार
ReplyDeleteअसंख्य इसके उपकार
दें हम भी प्रतिदान कुछ
जीवन अपना लें सँवार...धुंध में उठते जीवन विचार
बेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
कल 09/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
अति सुन्दर ...प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रकृति है जीवनाधार
ReplyDeleteअसंख्य इसके उपकार
दें हम भी प्रतिदान कुछ
जीवन अपना लें सँवार
bahut hi sundar bhavon ki prastuti .... sach hai hm prakriti ke prti behad laparvah hote ja rhe hai ak prerana dayee rachana.... abhar Sushila ji .
रश्मि प्रभा... ,@डॉ० डंडा लखनवी ,@संजय भास्कर,@Naveen Mani Tripathi आप सबका हार्दिक आभार ।
ReplyDelete@यशवन्त माथुर (Yashwant Mathur) - मंच प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार ।
बहुत खूब...
ReplyDeleteशुभकामनाये.
बहुत अच्छी रचना है मैडम आपकी
ReplyDeleteप्रकॄति संग
ReplyDeleteजुड़ा तन-मन
पंच-तत्व की काया
कहाँ जुदा हम ?
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति शब्द संयोजन कमाल का, बधाई......
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति..प्रकृति से अलग होना इतना आसान नहीं और इसका उपकार भूल कर हम केवल आपदाओं को आमंत्रित करते हैं..
ReplyDeleteवाह!!!!बहुत बढिया सार्थक प्रस्तुति,मन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteWELCOME to--जिन्दगीं--
समर्थक बन रहा हूँ आप भी बने,मुझे हार्दिक खुशी होगी,...
प्रकॄति संग
ReplyDeleteजुड़ा तन-मन
पंच-तत्व की काया
कहाँ जुदा हम ?....सच कहा आपने...
बहुत सुन्दर रचना...
सादर.
प्रकृति से जीवन को जोड़ना अच्छा लगा
ReplyDeleteप्रकॄति संग
ReplyDeleteजुड़ा तन-मन
पंच-तत्व की काया
कहाँ जुदा हम ?
बहुत सुन्दर,सार्थक प्रस्तुति.
वाह ...बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteप्रकृति है जीवनाधार
ReplyDeleteअसंख्य इसके उपकार
दें हम भी प्रतिदान कुछ
जीवन अपना लें सँवार
सुंदर अभिव्यक्ती
bhaut acche lage dhundh me ye vichar.....
ReplyDeleteसुन्दर...!!
ReplyDeleteप्रकॄति संग
ReplyDeleteजुड़ा तन-मन
पंच-तत्व की काया
कहाँ जुदा हम ?
बेहतरीन भाव, वाह !!!
behatarin
ReplyDeletesundar rachna :)
ReplyDeleteWelcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली