आया फाग
लाया मन अनुराग
होली के वे चित्र
बन गए हैं जीवन मित्र
फिर आ-आ गले मिलतेहैं
अतीत को जीवंत कर देते हैं !
नयनों में घूमे वही चौपाल
सजता हर रात नया स्वांग
होती महीने भर की होली
सखियों संग हँसी-ठिठोली
ढप और चंग की थाप
झूम उठते दिल और पाँव
जुटता सारा गाँव
होते सुख-दुख सांझे
सबको बाँधे प्रीत के धागे !
महानगरों के कंकरीट जंगल में
खो गये होली के रंग
घुटती हुई भांग कहाँ दिखती है
गाती-बजाती टोलियाँ कहाँ दिखती हैं
कहाँ छनकते हैं रून-झुन घुंघरू ?
सोसाइटी पार्क में
सज जाती हैं मेजें
तश्तरियाँ,पकौड़े,चाय/कॉफ़ी,शीतल पेय
तश्तरियाँ,पकौड़े,चाय/कॉफ़ी,शीतल पेय
लग जाता है म्यूज़िक सिस्टम
भीमकाय स्पीकर
फ़िल्मी गीत
बच्चों का हुड़दंग
बालकनियों से झाँकती आँखें
छितरे-छितरे से लोग
हाथों में अबीर-गुलाल के पैकेट
ढूँढते हैं परिचित चेहरे
उल्लास, उत्साह पर दुविधा की चादर
कौन करे रंगने की पहल
दुविधा में ही बढ़ जाते कदम !
कहाँ वो ज़ोर-जबर्दस्ती
वो लुकना-छिपना
वो ढूँढना
रंगो से नहला देना
खिल-खिल गले मिलना
ढोल पर झूम उठना
उल्लास पर काबिज हुई सौम्यता
मस्ती में भी संयम और गरिमा !
नहीं चढ़्ती कड़ाही
शकरपारे और गुजिया
नहीं बनती घर पर
हो जाती है होम डिलीवरी
मीठा तो है
माँ के हाथ की मिठास कहाँ
त्योहार तो है
वो उमंग, वो उल्लास कहाँ
अब उत्सव भी जैसे
परंपरा को जीते जाने की
एक औपचारिकता भर रह गए हैं
अंतर्जाल की दुनिया के
ब्लॉग, फ़ेसबुक, ट्वीटर पर
सिमट कर रह गए हैं !
-सुशीला शिवराण
आपको होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteसादर
सुंदर बिंबों से भरी यह कविता होली का पूरा आनंद दे रही है. सुंदर रचना. होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteत्योहार तो है
ReplyDeleteवो उमंग, वो उल्लास कहाँ
सिर्फ परंपरा निभाना हे...
आपको सपरिवार होली की शुभकामनाएँ!!
संजीदा करने वाली पंक्तियाँ....चीजों के मायने सच में कितने बदलते जा रहे हैं... !! बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति ....गहरी .. !! मेट्रोपोलिटन होती ज़िन्दगी में कुछ रंग तो खो ही गए हैं...शिद्दत से अपने होने की पड़ताल करती कविता... :)
ReplyDeleteमहानगरीय जीवन का आंकलन है ये रचना ...
ReplyDeleteहोली की मंगल कामनाएं ...
नहीं चढ़्ती कड़ाही
ReplyDeleteशकरपारे और गुजिया
नहीं बनती घर पर
हो जाती है होम डिलीवरी
मीठा तो है
माँ के हाथ की मिठास कहाँ
त्योहार तो है
वो उमंग, वो उल्लास कहाँ
अब उत्सव भी जैसे
परंपरा को जीते जाने की
एक औपचारिकता भर रह गए हैं
अंतर्जाल की दुनिया के
ब्लॉग, फ़ेसबुक, ट्वीटर पर
सिमट कर रह गए हैं ! .... ऐसे माहौल में एक स्नेहिल रंग मेरी तरफ से
आपको भी होली के त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteहम तो अब भी धूम मचाने को तैयार हैं.......
ReplyDelete:-)
बदले ज़माना...हम क्यूँ बदलें.?????
आपको होली की ढेर सी शुभकामनाएँ...
alag alag madhymo se bahut khub aaj ke parivesh me tyoharo ka varnan kiya hai..bahut hi behtarin lagi aapki yah rachana..
ReplyDelete*********wish u a very happy holi*********
बहुत बेहतरीन सतरंगी प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteहोली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...सुसीला जी...
RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,
गांव गुवाड़ में ले गए आपके शब्द...जहां होली जीवन का त्योहार है...जहां हर रंग नई सांस देता है...नहीं रहे वे दिन पर यह विश्वास जरुर बना रहे.....कितना भी बदल जाए होली...मन में रंग बना रहे बस...जब जब भीतर ढफ बजेगा, जीवन में गुलाल उड़ेगा और हमारे चारों ओर होगी अनूठी होली...। बेहतर रचना...बधाई
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति| होली की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteआधुनिक परिवेश की निस्संगता औपचारिकता और रस्म निभाई से रु बा रु है यह खूब सूरत रचना .अब न वो होली है न वो कन्हाई है ,न बांसुरी है न राग है न रंग सब कुछ ओरगेनिक हो चला है .फेशनेबुल भी ..फेशनेबुल भी .होली mubaarak भी ek ke badle ek की tarh hain .
ReplyDeleteकाल चक्र का सुखद दुखद परिवर्तन चलता ही रहता है.
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति लाजबाब है.
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
Sundar rachna ...holi ki dher saari shubkamnayen..
ReplyDeleteस्नेह और प्यार बढाने की परिपाटी, जो हमारे पूर्वजों ने शुरू की थी, अब केवल लकीर पीटना भर रह गया है ...
ReplyDeleteइस रचना का दर्द , आज के समाज की ऑंखें खोलने के लिए है , मगर समझने का समय किसके पास है और कम से कम ब्लागरों के पास तो बिलकुल नहीं :-(
रंगोत्सव पर आपको शुभकामनायें...
सुंदर ....
ReplyDeleteहाँ पीड़ा होती है लेकिन आशा ना टूटे विश्वास बना रहे
रंगभरी होली स्नेह के रंगों की
आपके साथ
सभी के साथ ...
रंगभरी स्नेहिल शुभ कामनाएँ सुशीला सिस ..