वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday, 17 March 2012

सड़क पर भविष्य



सड़क पर भविष्य


कचरे का ढेर


ढेर पर बच्चे

बीनते जूठन

नज़रें चुरा निगलते

देखा है अक्सर इन में

भविष्य भारत का मैंने !




भारत का वर्तमान

दौड़ता है सरपट

फ़ेरारियो में

बढ़ जाता है आगे 

लाद कर जिम्मेदारियाँ

ज्ञात-अज्ञात

रोकती हैं लाल बत्तियाँ

चौक-चौराहे, गली मुहाने

आ ही जाती हैं याचनाएँ

पसर जाते हैं हाथ

खीजता-सा वर्तमान

चढ़ा लेता है शीशे ऊपर

ऊपर-और ऊपर

मानो ढक दिया है उसने

भविष्य भारत का !



वर्तमान देखता है

मनचाही तस्वीर-

खटते मासूम बच्चे

पत्थर तोड़ते कोमल हाथ

बोझा ढोते कमज़ोर कंधे

चूड़ी-बीड़ी के कारखानों में

कुम्हलाया मासूम बचपन

विकासशील विशाल अट्टालिकाएँ

बेखौफ़ पालती हैं

बंधुआ मज़दूर

बीन कर बचपन !



होते ही हरी बत्ती

निकल जाता है

दौड़ता वर्तमान

रह जाता है निपट अकेला

सड़क पर भविष्य

खोल कर आँखें

पूछता है उसका बचपन

कब दोगे मुझे

मेरी आज़ादी

कल मेरा भी होगा

खुला आसमान

बताती थी दादी !


-सुशीला शिवराण


चित्र - साभार google




22 comments:

  1. पूछता है उसका बचपन
    कब दोगे मुझे
    मेरी आज़ादी
    कल मेरा भी होगा
    खुला आसमान
    बताती थी दादी !

    सही प्रश्‍न !!

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  2. बहुत सशक्त और सार्थक रचना...
    हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई बयाँ करती.....

    मगर बदलाव के लिए हम कुछ कर रहे हैं क्या????

    सादर.

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  3. एकदम सच बात कहती कविता।

    सादर

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  4. sach k rubru....sashakt bhav piroye hai'n....

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  5. कब दोगे मुझे
    मेरी आज़ादी
    कल मेरा भी होगा
    खुला आसमान
    बताती थी दादी...

    सच कहती सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति...

    MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...

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  6. बचपन का यह सवाल अंतहीन है

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  7. सुन्दर ।

    प्रभावी प्रस्तुति ।।

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  8. कडुवी सच्चाई है जिसको आपने शब्द दिया हैं ... बचपन आज खो रहा है इनका ...

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  9. sunder sarthak prastuti............

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  10. हमने अभी बचपन को मानव संसाधनों में सलीके से शामिल नहीं किया. उसे कुपोषण का शिकार होने के लिए रख छोड़ा है. हमारा भविष्य तदनुसार दिखता है. चेतावनी भरी बहुत सुंदर रचना.

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  11. sunder satik sarthak post .........badhai

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  12. बहुत से प्रश्नों के उत्तर मांगती हुई सार्थक पोस्ट आभार

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  13. एक सार्थक रचना!

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  14. काश, इसका जल्द-से-जल्द उन्मूलन हो सके.
    सार्थक रचना.
    सादर

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  15. समाज की विसंगति को बखूबी लिखा है ...अच्छी रचना

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  16. बस सिर्फ यही सुकून है ...की भविष्य कभी तो वर्तमान होगा ....तब उसका भी अपना एक खुला आसमान होगा!...सामयिक और सुन्दर !

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  17. कचरे का ढेर
    ढेर पर बच्चे
    बीनते जूठन
    नज़रें चुरा' निगलते
    देखा है अक्सर इन में
    भविष्य भारत का मैंने !


    आहऽऽ… ! हृदयविदारक स्थिति का चित्रण किया है आपने !

    आदरणीया सुशीला बहन जी
    बहुत भावपूर्ण लिखा है आपने…

    बेबस बेघर बच्चों के लिए लिखे मेरे एक गीत की कुछ पंक्तियां आपके लिए -
    छूटे हमसे अपने छूटे !
    मा'सूमों के सपने टूटे !!

    किस-किस से की हाथापाई !
    बीन के कचरा रोटी खाई !
    सिक्के चार हाथ में आए ;
    हाय ! छीनले पुलिस कसाई !
    ऊपर से थाने ले जा कर
    नंगा कर के बेंत से कूटे !!

    कभी पूरा गीत सुनाउंगा… … …

    आपकी पिछली सभी पोस्ट पढ़ चुका हूं …
    समय-स्थिति-सुविधा न होने के कारण विस्तार से बात नहीं कर पा रहा हूं…
    क्षमाभाव बनाए रहें
    हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  18. मारा मारा मर रहा, बचपन प्यारा हाय
    अम्बर के तारे यहाँ, तनिक चमक ना पाय

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  19. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

    मार्मिक रचना...उत्कृष्ट लेखन ..बधाई स्वीकारें



    नीरज

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  20. हमारी प्रगति और विकास के दावों की पोल खोलता कटु यथार्थ ....सशक्त रचना

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  21. बहुत बढ़िया,बेहतरीन करारी अच्छी प्रस्तुति,..
    नवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
    आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
    मेरी एक नई मेरा बचपन
    कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
    http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
    दिनेश पारीक

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