कस्तूरी प्रीत !
प्रीत के बिरवे
अंकुरित, पल्लवित
पुष्पित, सुरभित
गमके, महके
दूर से लहके
जिसके लिए खिले
रस, गंध को
नित वह तरसे
कस्तूरी प्रीत !
मन एकाकी
दूर साथी
रहे जहाँ
मन वहाँ
न कोई चिठिया
न कोई तार
कैसे गलबहियाँ हार
मैं तो गई हार
अनूठी ये रीत
कस्तूरी प्रीत !
-सुशीला शिवराण
चित्र : आभार गूगल
बहुत सुंदररचना ... ...!!
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनायें ...!
बहुत अच्छा लिखा है,आपने
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDelete......प्रशंसनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ
मैं ब्लॉगजगत में नया हूँ कृपया मेरा मार्ग दर्शन करे
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
बढ़िया प्रस्तुति ।।
ReplyDeleteबधाई ।।
bahut sundar ...virah bhi baawri hai
ReplyDeleteअनूठी ये रीत
ReplyDeleteकस्तूरी प्रीत !... संग संग रहे मेरे , फिर भी विकल रहे मन हर पल
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteकस्तूरी प्रीत....
खोजूं यहाँ वहाँ....बेवजह!!!!!
अनु
बहुत ही बढ़िया मैम
ReplyDeleteसादर
जिसके लिए खिले
ReplyDeleteरस, गंध को
नित वह तरसे....सच कहा सुशिलाजी ...यह जन्मों का सच बहुत ही सुन्दर उकेरा है आपने
अनोखी रीत कस्तूरी प्रीत,...
ReplyDeleteबहुत खूब सुंदर रचना,बेहतरीन भाव प्रस्तुति,....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
कस्तूरी प्रीत टाइटल ही बहुत कुछ कह गया।
ReplyDeleteप्रीत जब कस्तूरी हुई मेरी दीवानगी की ना कोई हद रही
प्रेम कस्तूरी की प्रीत अनूठी ही होती है ... होई हद नहीं होती ...
ReplyDeleteरामनवमी की बधाई ...
बहुत खूबसूरत शब्द विन्यास ....
ReplyDeleteवियोग जीवन का एक अटूट हिस्सा है ...कभी संतान से ...कभी साथी से ...कभी प्रियजनों से ....और उसकी टीस साफ़ उभरी है आपकी कविता में
ReplyDeleteumda rachna,bdhai aap ko
ReplyDeleteभवनाओं के सुंदर प्रवाह की कविता है.
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