वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Friday, 11 May 2012

मर-मर के जीना !



मज़दूर दिवस पर मज़दूर भाइयों को ससम्मान समर्पित........

मर-मर के जीना !

दिहाड़ी का मज़दूर
कोसता है हड़ताल को
बंद को, चक्का जाम को!
नहीं निकल पाता घर से
नहीं बनती उसकी दिहाड़ी
नहीं जलता चूल्हा
जलते हैं पेट !
दुत्कार देता है सेठ
अगाड़ी ना पिछाड़ी
संबंध बनते हैं माया से
जान गया है वो
मायावी दुनिया से !
******************


गरीब किसान
लेता है कर्ज़
बोता है बीज आशाओं के
फूटता है अंकुर
खिलता है चेहरा
लहलहाती फ़सल
हरिया देती है उसे
मेघ दगा दे जाते हैं
उमड़-घुमड़ बिन बरसे
निकल जाते हैं
देख सूखती फ़सल
प्राण सूख जाते हैं !



***************

पटरी पर बैठे दुकानदार
बेचें सौदा छुट-पुट हज़ार
बुलाएँ गाहक पुकार-पुकार
इनफ़लेशन में मंदा है बाज़ार
देख म्यूनिसिपैलिटी की गाड़ी
निकल जाते हैं प्राण
आँखों के आगे से
उठ जाती है उनकी मिल्कियत
देखते रहते निरीह गूँगे से
थक गए हैं लुट-लुट कर जीने से
कब तक लड़ना होगा भाग्य से
बाज आए मर-मर के जीने से !

फिर भी .......

इनका जीना ज़रूरी है
ताकि चंद लोग
जी सकें भरपूर !

-
सुशीला शिवराण

चित्र : साभार गूगल

16 comments:

  1. फिर भी .......
    इनका जीना ज़रूरी है
    ताकि चंद लोग
    जी सकें भरपूर !

    सार्थक सटीक भाव की बेहतरीन रचना,...

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    1. आभार धीरेन्द्र जी ।

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  2. देख सूखती फ़सल
    प्राण सूख जाते हैं !



    सुन्दर प्रस्तुति |
    आभार ||

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    1. शुक्रिया आपको मेरी रचना पसंद आई।

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  3. एहसासों से पूर्ण

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    1. उत्साहवर्धन के लिए आभार रश्मि जी।

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  4. इनका जीना ज़रूरी है
    ताकि चंद लोग
    जी सकें भरपूर !....बहुत सुन्दर अहसास....सुशीला जी..

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    1. मेरी संवेदना में शालिल होने के लिए आभार।

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  5. बहुत सुंदर भाव.....

    अच्छी अभिव्यक्ति सुशीला जी.
    अनु

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    1. कविता पढ़्ने और सराहने के लिए आभार अनु जी।

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  6. आदरणीया सुशीला शिवराण जी
    सस्नेहाभिवादन !
    नमस्कार !

    प्रविष्टि के अनुकूल चित्रों के साथ सार्थक रचना के लिए आभार !
    मजदूरों और आम आदमी के लिए सोचने वाले रचनाकारों को निरंतर उनकी पीड़ा को वाणी देते रहने की आवश्यकता है …

    मंगलकामनाओं सहित…
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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    1. बहुत दिनों बाद आपको ब्लॉग पर देखकर, पढ़कर बहुत खुशी हुई।
      प्रोत्साहन के लिए आभार भाई सा।

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  7. मेहनत करने वालों की पीड़ा के प्रति आपका सरोकार सराहनीय है. कविता में संवेदनशीलता दर्शनीय है.

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    1. आप तक मेरे भाव पहुँचे रचना सार्थक हुई । हार्दिक आभार।

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  8. इनका जीना ज़रूरी है
    ताकि चंद लोग
    जी सकें भरपूर !

    कितनी सच बात लिखी है .... सुंदर भावभिव्यक्ति

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  9. सच कितना कठोर हो सकता है ......!बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति सुशीलाजी

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