वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Sunday, 26 February 2012

नहीं होती अपनी बात !



अलस सुबह
चाय की प्याली
और उसका साथ
ऐसी होती
तुम्हारी प्रभात
नहीं होती अपनी बात !

इंतज़ार में कटती
सुबह सारी
दोपहर तुम्हें
झपकी प्यारी
मैं ताकूँ
सूरत तुम्हारी
यूँ लेता समय काट
नहीं होती अपनी बात !

शाम की चाय
चंद लमहे साथ बिताएँ
शुरू होती बात
बजती कॉलबेल
आई तुम्हारी बाई
निर्देशों की झड़ी लगाई
टी.वी. रिमोट मेरे हाथ
नहीं होती अपनी बात !

अब खुलता घर में स्कूल
प्रश्‍नपत्र, उत्‍तरपुस्तिका
खूब करवाएँ मुझे प्रतीक्षा
लिए आँखॊं में कौतूहल
कब समेटोगी स्कूल
सामने पोथी-किताब
नहीं होती अपनी बात !

फिर ये नासपीटी फ़ेसबुक
तुम्हें मुझसे छीन लेती
बड़ी उमंग से तुम
माऊस हाथ पकड़ लेती
बहुतों को लाईक करने लगी हो
खूब वाह-वाह करने लगी हो
बस दो मिनट !
बच्चों की तरह
मुझे बहलाने लगी हो
जोहता रहता मैं बाट
नहीं होती अपनी बात !
-सुशीला श्योराण

Saturday, 18 February 2012

अर्थ के हेतु




अर्थ के हेतु

अर्थ के हेतु
खो जाता
जीवन का अर्थ !
अर्थ का मोह
ले जाता बिदेस

साथ ले जाता
सारी खुशियाँ
दे जाता
एकाकीपन
तन्हाई
इंतज़ार !

आया करवाचौथ
सजी सुहागन
रची मेहंदी हाथ
सजा मांग-सिंदूर
आभूषणों से
सजी भरपूर
कलेजे से
निकली हूक
किसे दिखाऊँ
यह शृंगार
साथ नहीं
जीवन-
शृंगार 
चाँद को अर्ध्य
तुम कहाँ
काँपते हाथ
थामें तस्वीर
उठे दिल में
घनी पीर
हाय तक़दीर !

आई दिवाली
जगमग घर
दीयों की कतार
लट्टुओं की लड़ी
नाना उपहार
मिठाइयाँ बड़ी
सामने फूलझड़ी
नहीं उठते हाथ
पिया नहीं साथ
कैसा उत्सव
कैसा त्यौहार
बाट जोहते
मैं तो गई हार !

दिल-दिमाग में
छिड़ती जंग
इतना भी नहीं
हाथ तंग
फिर क्यों नहीं
पाटते ये खाई
नहीं समेटते
ये दूरियाँ
कब चहकेगी
मन की चिरैया
कब महकेगी
जीवन फुलवारी
तपती रेत में
पिया मेह-सी
आस तुम्हारी |
-सुशीला श्योराण

Sunday, 12 February 2012

वह स्वतंत्रा


मुझे जीने दो...............

मेट्रो शहर 
अंग्रेज़ी मीडियम 
श्वेत वर्णा मोहिनी
पिता का  ऊँचा रूतबा  
गर्दन हमेशा तनी रहती 
वह गर्विता 
वह स्वतंत्रा ! 


संवेदनादया 
क्या होती हया 
कहाँ जाना ?
किया वही
जो मन माना
कुछ ज़िद्दी
कुछ उच्छृंखल
वह स्वतंत्रा !


उँची स्कर्ट
टाईट जिन्स
छोटे टॉप
Mom की चिंता
Dad की भृकुटि
मात-पिता
पुरातन पंथी
व्यर्थ विचार
जनरेशन गैप 
वह स्वतंत्रा ! 


रूतबे नेरूतबे से जोड़ा
अधिकारी से गठजोड़ा
पात्रता
रूप और रूतबा
जो था भरपूर
गुमान कम नहीं
कहती थी "मैं हूर"
वह स्वतंत्रा !  

बड़ा नाज़ था खुद पे उसे
जो चाहा वो पाया 
बेटी जन्मी
थोड़ा कुंठित
पहली बार
नहीं मिला अभिष्ट
रह गई कसक
वह स्वतंत्रा ! 


दूसरी बार प्रबल आस
करवाया परीक्षण
टूटे सपने 
कैसे मानती हार !
कोख में ही नरसंहार
तीसरी फिर
चौथी बार
वही घटनाक्रम
विधि को  दिखा अंगूठा
दुस्साहस घोर
गर्भ में घोटी साँस
बेटी की नहीं आस 
वह स्वतंत्रा ! 


प्रकृति भी हुई व्यथित
उसकी ममता पड़ी उमड़ 
मानी हार दिया उपहार
फिर परीक्षण चमकी आँखें
खिल गईं बाँछें
जैसे पाई उपलब्धि हो
विरली डिग्री लब्धि हो
वह स्वतंत्रा !


तोड़े बंधन
समाज के
संस्कार के
परिधान के
विधान के
आचार के 
विचार के
फिर क्यों
बेटे-बेटी में अंतर
क्यों भ्रूण-हत्या
मैं निरूत्तर
वह स्वतंत्रा !


यही है समाज
वो इसका प्रतीक
ढोंग का आवरण
ओढ़ लिया है
मुखौटा सटीक
चढ़ा लिया है
मॉडर्न परत
हटा के देखो
वही मिलेंगे
रिवाज़विचार
पब्लिक में
न कर पाते 
स्वीकार !

नकलीपन लिए
जी रहे हैं
खुद से खुद को 
छुपा रहे हैं
पाया अक्षर-ज्ञान
शिक्षा नहीं
संस्कारों की
दीक्षा नहीं
बुद्धि है 
विवेक नहीं
मन है
संयम नहीं
कर्म क्षुद्र 
नेक नहीं !
वह स्वतंत्रा !

-सुशीला श्योराण

चित्र : आभार - गूगल

Saturday, 11 February 2012

छोड़ आई हूँ


  नेवल पब्लिक स्कूल, कोच्ची


अज़ीज़ इक हिस्सा वज़ूद का छोड़ आई हूँ
शांत समंदर, फ़ेनिल लहरें छोड़ आई हूँ


जा के न जाएँ वो दिन बरस छोड़ आई हूँ
मावेली, केरा वो देस ........छोड़ आई हूँ

बेहद दिल के करीब वो स्कूल,बच्चे,सहेलियाँ
पूकलम, कथकली, ओणम सद्‍या छोड़ आई हूँ

इतवार, कैरम की बैठक और चारों हम
हार पे रूठना-मनाना छोड़ आई हूँ


किश्त-दर-किश्त मुकम्मल वो हसरतों का आशियाँ
बसाया था इक घर-संसार छोड़ आई हूँ

बिसर के भी नहीं बिसरे बसे हैं दिल में
यादें साथ, ग्यारह बरस छोड़ आई हूँ


सुशीला श्योराण


मैंने अपने जीवन के ग्यारह बेहतरीन साल कोच्ची में गुज़ारे। उन्हीं मीठी यादों को कागज़ पर उतारने का प्रयास किया है।उम्मीद है आपको पसंद आएगा।

* मावेली केरल में महाबली को बोलते हैं जो एक अत्यंत दयालु और न्यायप्रिय राजा थे। उनकी लोकप्रियता से ईर्ष्या कर वामन अवतार में विष्णु ने उन्हें पाताल लोक भेज दिया था। उन्हीं की याद में, उन्हीं के स्वागत के लिए महा उत्सव ओणम मनाया जाता है।

*मलयालम में नारियल को केरा कहते हैं जिस पर इस प्रदेश का नाम केरल पड़ा है। 
School picture -
courtesy - Parvathy Gireendaran 

Sunday, 5 February 2012

तेरी याद



शरद की धूप क्यूँ तन मेरे उतरती नहीं,
चाँदनी क्यूँ आँगन मेरे उतरती नहीं |

बहारे चमन भी क्यूँ मुझको लुभाती नहीं,
ये शोखियाँ क्यूँ घर-डेरे उतरती नहीं |

हरसू महफ़िल, राग-रंग, फ़ाग और मेले,
ये साज़धुन क्यूँ रूह तेरे उतरती नहीं |

मन का पपीहा छेड़े राग बेहद हसीं,
अमराई पे कोयल सवेरे उतरती नहीं |

एक मुद्द्त हुई इन फ़ासलों को नापते,
तेरी याद दिल को घेरे उतरती नहीं |

आँखें गोया हो गई हैं सावन-भादो,
याद तेरी मन में अंवेरे उतरती नहीं |

तेरा साया हर लमहा मेरे साथ है,
प्रीत ने लिए तुम संग फ़ेरे, उतरती नहीं|

-सुशीला श्योराण