अलस सुबह
चाय की प्याली
और उसका साथ
ऐसी होती
तुम्हारी प्रभात
नहीं होती अपनी बात !
इंतज़ार में कटती
सुबह सारी
दोपहर तुम्हें
झपकी प्यारी
मैं ताकूँ
सूरत तुम्हारी
यूँ लेता समय काट
नहीं होती अपनी बात !
शाम की चाय
चंद लमहे साथ बिताएँ
शुरू होती बात
बजती कॉलबेल
आई तुम्हारी बाई
निर्देशों की झड़ी लगाई
टी.वी. रिमोट मेरे हाथ
नहीं होती अपनी बात !
अब खुलता घर में स्कूल
प्रश्नपत्र, उत्तरपुस्तिका
खूब करवाएँ मुझे प्रतीक्षा
लिए आँखॊं में कौतूहल
कब समेटोगी स्कूल
सामने पोथी-किताब
नहीं होती अपनी बात !
फिर ये नासपीटी फ़ेसबुक
तुम्हें मुझसे छीन लेती
बड़ी उमंग से तुम
माऊस हाथ पकड़ लेती
बहुतों को लाईक करने लगी हो
खूब वाह-वाह करने लगी हो
बस दो मिनट !
बच्चों की तरह
मुझे बहलाने लगी हो
जोहता रहता मैं बाट
नहीं होती अपनी बात !
-सुशीला श्योराण