नेवल पब्लिक स्कूल, कोच्ची |
अज़ीज़ इक हिस्सा वज़ूद का छोड़ आई हूँ
शांत समंदर, फ़ेनिल लहरें छोड़ आई हूँ
जा के न जाएँ वो दिन बरस छोड़ आई हूँ
मावेली, केरा वो देस ........छोड़ आई हूँ
बेहद दिल के करीब वो स्कूल,बच्चे,सहेलियाँ
किश्त-दर-किश्त मुकम्मल वो हसरतों का आशियाँ
बसाया था इक घर-संसार छोड़ आई हूँ
बिसर के भी नहीं बिसरे बसे हैं दिल में
यादें साथ, ग्यारह बरस छोड़ आई हूँ
सुशीला श्योराण
मैंने अपने जीवन के ग्यारह बेहतरीन साल कोच्ची में गुज़ारे। उन्हीं मीठी यादों को कागज़ पर उतारने का प्रयास किया है।उम्मीद है आपको पसंद आएगा।
* मावेली केरल में महाबली को बोलते हैं जो एक अत्यंत दयालु और न्यायप्रिय राजा थे। उनकी लोकप्रियता से ईर्ष्या कर वामन अवतार में विष्णु ने उन्हें पाताल लोक भेज दिया था। उन्हीं की याद में, उन्हीं के स्वागत के लिए महा उत्सव ओणम मनाया जाता है।
*मलयालम में नारियल को केरा कहते हैं जिस पर इस प्रदेश का नाम केरल पड़ा है।
School picture -
courtesy - Parvathy Gireendaran
शांत समंदर, फ़ेनिल लहरें छोड़ आई हूँ
जा के न जाएँ वो दिन बरस छोड़ आई हूँ
मावेली, केरा वो देस ........छोड़ आई हूँ
बेहद दिल के करीब वो स्कूल,बच्चे,सहेलियाँ
पूकलम, कथकली, ओणम सद्या छोड़ आई हूँ
इतवार, कैरम की बैठक और चारों हम
हार पे रूठना-मनाना छोड़ आई हूँकिश्त-दर-किश्त मुकम्मल वो हसरतों का आशियाँ
बसाया था इक घर-संसार छोड़ आई हूँ
बिसर के भी नहीं बिसरे बसे हैं दिल में
यादें साथ, ग्यारह बरस छोड़ आई हूँ
सुशीला श्योराण
मैंने अपने जीवन के ग्यारह बेहतरीन साल कोच्ची में गुज़ारे। उन्हीं मीठी यादों को कागज़ पर उतारने का प्रयास किया है।उम्मीद है आपको पसंद आएगा।
* मावेली केरल में महाबली को बोलते हैं जो एक अत्यंत दयालु और न्यायप्रिय राजा थे। उनकी लोकप्रियता से ईर्ष्या कर वामन अवतार में विष्णु ने उन्हें पाताल लोक भेज दिया था। उन्हीं की याद में, उन्हीं के स्वागत के लिए महा उत्सव ओणम मनाया जाता है।
*मलयालम में नारियल को केरा कहते हैं जिस पर इस प्रदेश का नाम केरल पड़ा है।
School picture -
courtesy - Parvathy Gireendaran
बहुत खूब मैम! वो दिन भुलाए न भूलेंगे।
ReplyDeleteसादर
बहुत-बहुत शुक्रिया यशवन्त जी
Deletebahut khub, kuch yaade bhula pana aasan nahi hhoti....
ReplyDeletegods own country....
ReplyDeleteसुन्दर से प्रांत पर कही सुन्दर रचना..
किश्त-दर-किश्त मुकम्मल वो हसरतों का आशियाँ
ReplyDeleteबसाया था इक घर-संसार छोड़ आई हूँ
बिसर के भी नहीं बिसरे बसे हैं दिल में
यादें साथ, ग्यारह बरस छोड़ आई हूँ
waah kya khoob likha hai aapne,
bahut gehre jaker baith gyi hai hamare men me aapki ye behtreen prastuti