मुझे जीने दो............... |
मेट्रो शहर
अंग्रेज़ी मीडियम
श्वेत वर्णा मोहिनी
पिता का ऊँचा रूतबा
पिता का ऊँचा रूतबा
गर्दन हमेशा तनी रहती
वह गर्विता
वह स्वतंत्रा !
संवेदना, दया
क्या होती हया
कहाँ जाना ?
किया वही
जो मन माना
कुछ ज़िद्दी
कुछ उच्छृंखल
वह स्वतंत्रा !
उँची स्कर्ट
टाईट जिन्स
छोटे टॉप
Mom की चिंता
Dad की भृकुटि
मात-पिता
पुरातन पंथी
पुरातन पंथी
व्यर्थ विचार
जनरेशन गैप
वह स्वतंत्रा !
रूतबे नेरूतबे से जोड़ा
अधिकारी से गठजोड़ा
पात्रता –
रूप और रूतबा
जो था भरपूर
गुमान कम नहीं
कहती थी "मैं हूर"
वह स्वतंत्रा !
बड़ा नाज़ था खुद पे उसे
जो चाहा वो पाया
बेटी जन्मी
थोड़ा कुंठित
पहली बार
नहीं मिला अभिष्ट
रह गई कसक
वह स्वतंत्रा !
दूसरी बार प्रबल आस
करवाया परीक्षण
टूटे सपने
कैसे मानती हार !
कोख में ही नरसंहार
तीसरी फिर
चौथी बार
वही घटनाक्रम
विधि को दिखा अंगूठा
दुस्साहस घोर
गर्भ में घोटी साँस
बेटी की नहीं आस
वह स्वतंत्रा !
प्रकृति भी हुई व्यथित
उसकी ममता पड़ी उमड़
मानी हार दिया उपहार
फिर परीक्षण चमकी आँखें
खिल गईं बाँछें
जैसे पाई उपलब्धि हो
विरली डिग्री लब्धि हो
वह स्वतंत्रा !
तोड़े बंधन
समाज के
संस्कार के
परिधान के
विधान के
विधान के
आचार के
विचार के
फिर क्यों
बेटे-बेटी में अंतर
क्यों भ्रूण-हत्या
मैं निरूत्तर
वह स्वतंत्रा !
यही है समाज
वो इसका प्रतीक
ढोंग का आवरण
ओढ़ लिया है
मुखौटा सटीक
चढ़ा लिया है
मॉडर्न परत
हटा के देखो
वही मिलेंगे
रिवाज़, विचार
पब्लिक में
न कर पाते
स्वीकार !
नकलीपन लिए
जी रहे हैं
खुद से खुद को
छुपा रहे हैं
पाया अक्षर-ज्ञान
शिक्षा नहीं
संस्कारों की
दीक्षा नहीं
बुद्धि है
विवेक नहीं
मन है
संयम नहीं
कर्म क्षुद्र
नेक नहीं !
वह स्वतंत्रा !
-सुशीला श्योराण
चित्र : आभार - गूगल
चित्र : आभार - गूगल
समय के साथ संवाद करती हुई आपकी यह प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "भीष्म साहनी" पर आपका बेशब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteशुक्रिया प्रेम सरोवर जी।
Deleteसोचने पर विवश करती....
ReplyDeleteसार्थक रचना..
आपकॊ छुआ इस कविता ने धन्यवाद विद्या जी।
Deleteधन्यवाद विद्या जी।
Deleteआधुनिक परिधान से हो गए हैं पर अभी भी पुरातनपंथी विचारों से जकड़े हुये हैं ... सार्थक लेखन ।
ReplyDeleteसोचने पर विवश करती....
ReplyDeleteसार्थक रचना |
आभार संगीता जी इस सार्थकता को बल देने के लिए।
Deleteबड़ा नाज़ था
ReplyDeleteखुद पे उसे
जो चाहा
वो पाया
बेटी जन्मी
थोड़ा कुंठित
पहली बार
नहीं मिला
अभिष्ट
रह गई कसक
वह स्वतंत्रा !
........behtareen rachna
हार्दिक आभार रश्मि जी।
Deleteबेहतरीन गीत...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
शुक्रिया नीरज जी।
Deleteविधि को
ReplyDeleteदिखा अंगूठा
दुस्साहस घोर
गर्भ में घोटी साँस
बेटी की नहीं आस
वह स्वतंत्रा !
wah Sushila ji bahut khoob likha hai apne ......swantantrta pr teekha vyang ...badhai sweekaren.
बधाई स्वीकार और हार्दिक आभार नवीन जी।
Deleteबहुत बहुत सुंदर रचना बहुत गहरे से दिल को छू के गयी है
ReplyDeleteआपका वीथी पर स्वागत है मासूम शायर जी। तहे दिल से शुक्रिया।
Deleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 16-02-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज...हम भी गुजरे जमाने हुये .
आभार संगीता जी। बहुत सुंदर हलचल लेकर आई हैं आप बेहतरीन links के साथ।
Deleteमेरी "वह स्वतंत्रा" शामिल करने के लिए आभार।
इस पर मेरी टिप्पणी नहीं दिख रही ॥स्पैम में देखिएगा
ReplyDeleteशिक्षा नहीं
ReplyDeleteसंस्कारों की
दीक्षा नहीं
बुद्धि है
विवेक नहीं.bahut gahan abhivaykti.
आभार निशा जी। आपने इस कविता के मर्म को पकड़ा।
Deleteकुछ प्रश्न खड़े करती यह कविता गंभीरता से बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है।
ReplyDeleteसादर
और समाज को एक नई दिशा भी कि आधुनिक विचारोम से बनो,वस्त्रों से नहीं और विधाता का दिया जीवन हरने का हमें कोई अधिकार नहीं।
Deleteशुक्रिया @यशवन्त माथुर (Yashwant Mathur)ji
marmik......
ReplyDelete@mridula pradhan जी शुक्रिया
Deleteविचारणीय ,सार्थक पोस्ट..बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteआभार @http://www.blogger.com/profile/07497968987033633340
Deleteबेहतरीन सार्थक सुंदर रचना, बहुत अच्छी प्रस्तुति,....
ReplyDeleteMY NEW POST ...कामयाबी...
@dheerendra जी हार्दिक आभार
Deleteअलग ही अंदाज में आपने ज्वलंत प्रश्न को उठाया है....
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक रचना...
सादर बधाई...
बहुत-बहुत शुक्रिया @S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib')
Deleteसोचने को विवश करती इंसान के दोहरे चरित्र को दर्शाती एक अति उत्तम रचना।
ReplyDeleteआपकी सराहना मिली रचना सार्थक हुई। आभार@वन्दना जी
Deleteबहुत ही सार्थक कविता लिखी है ..
ReplyDeleteदोहरेपन पर आघात करती हुई कविता .. आभार
जी सही कहा आपने । आईना दिखाने का प्रयास किया है । शायद कोई अपनी सूरत पहचान ले!
Delete@पुष्पेन्द्र वीर साहिल - आपका हार्दिक आभार
टिप्पणियाँ जो प्रेरणास्त्रोत हैं। जिनको पढ़ना आनंद और तुष्टि का संचार करता है-
ReplyDeletehttps://www.facebook.com/notes/sushila-shivran/%E0%A4%B5%E0%A4%B9-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE/251982748210368?notif_t=note_comment
sarthak aur khubsurat prastuti..
ReplyDeletehar shabd lajabab!
आपकी टिप्प्णी रचना की सफ़लता की कहानी बयां करती है। हार्दिक आभार @Mukesh Kumar Sinha जी।
Deleteअपने Blog का link दीजिये।
आपका तहे दिल से शुक्रिया @सदा जी
ReplyDeleteबेहद सुन्दर भावपूर्ण रचना है....
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