अलस सुबह
चाय की प्याली
और उसका साथ
ऐसी होती
तुम्हारी प्रभात
नहीं होती अपनी बात !
इंतज़ार में कटती
सुबह सारी
दोपहर तुम्हें
झपकी प्यारी
मैं ताकूँ
सूरत तुम्हारी
यूँ लेता समय काट
नहीं होती अपनी बात !
शाम की चाय
चंद लमहे साथ बिताएँ
शुरू होती बात
बजती कॉलबेल
आई तुम्हारी बाई
निर्देशों की झड़ी लगाई
टी.वी. रिमोट मेरे हाथ
नहीं होती अपनी बात !
अब खुलता घर में स्कूल
प्रश्नपत्र, उत्तरपुस्तिका
खूब करवाएँ मुझे प्रतीक्षा
लिए आँखॊं में कौतूहल
कब समेटोगी स्कूल
सामने पोथी-किताब
नहीं होती अपनी बात !
फिर ये नासपीटी फ़ेसबुक
तुम्हें मुझसे छीन लेती
बड़ी उमंग से तुम
माऊस हाथ पकड़ लेती
बहुतों को लाईक करने लगी हो
खूब वाह-वाह करने लगी हो
बस दो मिनट !
बच्चों की तरह
मुझे बहलाने लगी हो
जोहता रहता मैं बाट
नहीं होती अपनी बात !
-सुशीला श्योराण
अरे निकालिए वक्त बात का....
ReplyDeleteकोई नाराज़ ना हो जाएँ...
सुन्दर अभिव्यक्ति..
धन्यवाद विद्या जी। संयम की कोशिश ज़ारी है मगर ये फ़ेसबुक का चुंबकीय आकर्षण.....खींच ही तो लेता है अपनी ओर :)
Deleteये आपने लिखा ... विचार तो पति के हैं :)
ReplyDeleteविचार और शिकायत (जो कि जायज़ है)पति के हैं बस उनकी शिकायत को मैंने अल्फ़ाज़ दे दिये हैं।
Deleteसादर
:-)
सुसीला जी,पति की शिकायत जायज है नारजगी कहीं ज्यादा न बढ़ जाय,....
Deleteअति उत्तम,सराहनीय प्रस्तुति,
NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
yadi aap mere dwara sampadit kavy sangrah mein shamil hona chahte hain to sampark karen
ReplyDeleterasprabha@gmail.com
जवाब भेज दिया है gmail पर देखें ज़रा।
Deleteसादर
सुशीला
:) बहुत खूब कही!
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति, सुन्दर भावाभिव्यक्ति, सादर.
ReplyDeleteअंकल जी की जायज शिकायत को बेहतरीन शब्द दिये हैं।
ReplyDeleteसादर
bahut khoobsurat ma'am . Agar itni ache shabdon mai shikayat batai gayi hai toh phir yeh shikayat baar baar ho.... :D
ReplyDeletekeep writing lovely blogs Ma'am
love JSM