अर्थ के हेतु
खो जाता
जीवन का अर्थ !
अर्थ का मोह
ले जाता बिदेस
साथ ले जाता
सारी खुशियाँ
दे जाता
एकाकीपन
तन्हाई
इंतज़ार !
आया करवाचौथ
सजी सुहागन
रची मेहंदी हाथ
सजा मांग-सिंदूर
आभूषणों से
सजी भरपूर
कलेजे से
निकली हूक
किसे दिखाऊँ
यह शृंगार
साथ नहीं
जीवन-शृंगार
चाँद को अर्ध्य
तुम कहाँ
काँपते हाथ
थामें तस्वीर
उठे दिल में
घनी पीर
हाय तक़दीर !
आई दिवाली
जगमग घर
दीयों की कतार
लट्टुओं की लड़ी
नाना उपहार
मिठाइयाँ बड़ी
सामने फूलझड़ी
नहीं उठते हाथ
पिया नहीं साथ
सारी खुशियाँ
दे जाता
एकाकीपन
तन्हाई
इंतज़ार !
आया करवाचौथ
सजी सुहागन
रची मेहंदी हाथ
सजा मांग-सिंदूर
आभूषणों से
सजी भरपूर
कलेजे से
निकली हूक
किसे दिखाऊँ
यह शृंगार
साथ नहीं
जीवन-शृंगार
चाँद को अर्ध्य
तुम कहाँ
काँपते हाथ
थामें तस्वीर
उठे दिल में
घनी पीर
हाय तक़दीर !
आई दिवाली
जगमग घर
दीयों की कतार
लट्टुओं की लड़ी
नाना उपहार
मिठाइयाँ बड़ी
सामने फूलझड़ी
नहीं उठते हाथ
पिया नहीं साथ
कैसा उत्सव
कैसा त्यौहार
बाट जोहते
मैं तो गई हार !
दिल-दिमाग में
छिड़ती जंग
इतना भी नहीं
हाथ तंग
फिर क्यों नहीं
पाटते ये खाई
नहीं समेटते
ये दूरियाँ
कब चहकेगी
मन की चिरैया
कब महकेगी
जीवन फुलवारी
तपती रेत में
पिया मेह-सी
आस तुम्हारी |
-सुशीला श्योराण
कैसा त्यौहार
बाट जोहते
मैं तो गई हार !
दिल-दिमाग में
छिड़ती जंग
इतना भी नहीं
हाथ तंग
फिर क्यों नहीं
पाटते ये खाई
नहीं समेटते
ये दूरियाँ
कब चहकेगी
मन की चिरैया
कब महकेगी
जीवन फुलवारी
तपती रेत में
पिया मेह-सी
आस तुम्हारी |
-सुशीला श्योराण
अर्थ के हेतु
ReplyDeleteखो जाता
जीवन का अर्थ !
अर्थ का मोह
गहन भाव लिए ...
धन्यवाद @सदा जी
Deleteबेहद सुन्दर भावपूर्ण रचना है....
ReplyDeleteहार्दिक आभार @Reena Maurya जी
Deleteमन की टीस को अच्छे से बयान करती कविता।
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया @यशवन्त माथुर (Yashwant Mathur)जी
Deleteकब चहकेगी
ReplyDeleteमन की चिरैया... कब ख़त्म होगा इंतज़ार, बहुत अकेलेपन का भाव
इंतज़ार खत्म हुआ @रश्मि प्रभा...जी ! अब तो मन यह कह रहा है -
Deleteमकां ये घर हुआ
नसीब मेहरबां हुआ
मुद्दत के बाद !
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteहार्दिक आभार @निवेदिता श्रीवास्तव जी
Deleteबेहद सुन्दर भावपूर्ण रचना है....
ReplyDeleteहार्दिक आभार @sangita जी
Deleteअब तो आ जायेंगे...
ReplyDeleteबस ये रचना पढ़ भर लें...
:-)
मुस्कुराइए...
सस्नेह..
अब तो आ जायेंगे...
ReplyDeleteये रचना पढ़ तो लें...
:-)
मुस्कुराइए...
सस्नेह...
आ गए हैं @vidya जी ! और दिल कह रहा है -
Deleteवैसे तो है मसरूफ़ियत ज़िन्दगी में बड़ी
बड़े खुशनुमा आजकल अपने हालात हैं
रोशन है मेरे घर का हर कोना
मुट्ठी में मेरी आज कायनात है
-सुशीला श्योराण
:) बधाई..बधाई...
Deleteकितना बड़ा सच है अर्थ के लिए खो जाता है जीवन का अर्थ। इस बार मेरी पत्नी ने भी यह दुख झेला कि करवा चौथ पर मैं उसके साथ नहीं था।
ReplyDelete@lokendra singh rajput इस दौड़-भाग भरी ज़िन्दगी ने बहुत कुछ छीना है हमसे! कविता पढने और स्वय़ं को उससे जुड़ा पाने के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteहार्दिक आभार @dheerendra जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,बेहतरीन भाव भरी सुंदर रचना,...
ReplyDeleteMY NEW POST...आज के नेता...
दिल दिमाग की ये जंग चलती रहती है पर पिया मिलन की आस ... प्रेम का रंग नहीं हारता कभी ...
ReplyDeleteअर्थ के चक्कर में जीवन जीने अर्थ खो जाता है,..
ReplyDeleteबहुत,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति,सुंदर सटीक रचना के लिए बधाई,.....
NEW POST...काव्यांजलि...आज के नेता...
NEW POST...फुहार...हुस्न की बात...
आपकी कविता के प्रत्येक शब्द समवेत स्वर में बोल उठे हैं ।.भाव भी मन को दोलायमान कर गया । मेरे नए पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteअर्थ का ही चक्कर है कि कई बार अनर्थ हो जाता है.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.