आओ सारे बंधन तोड़ें
बंधन पीर दे जाते हैं
आज बादलों संग उड़ें
देह वसन दे जाते हैं !
विचरेंगे जब अनंत गगन
मन में लिए तेरी लगन
खुदी में होंगे हम मगन
रूहों का संगम, नहीं बदन !
जन्म-मरण का न फेरा होगा
अपनी साँझ औ सवेरा होगा
वहाँ बंदिशों का न घेरा होगा
चँदा औ तारों में बसेरा होगा !
झिलमिल तारे अँगना होंगे
पिछवाड़े हरसिंगार झरेंगे
नित खुशबुओं के डेरे होंगे
सीले झोंके पुरवाई होंगे !
अनंत व्योम विस्तार होगा
छूटा निर्मोही संसार होगा
हर दुख का निस्तार होगा
शाश्वत प्रेम अपार होगा !
रूह को रूह जब पाएगी
सारी सृष्टि खिल जाएगी
दिव्य गीत कोई गाएगी
पावन प्रीत मुस्काएगी !
-सुशीला शिवराण
चित्र - साभार गूगल
बहुत ख़ूबसूरत भावमयी रचना...
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteअनंत व्योम विस्तार होगा
ReplyDeleteछूटा निर्मोही संसार होगा
हर दुख का निस्तार होगा
शाश्वत प्रेम अपार होगा !
आओ सारे बंधन तोडें.........
काश के इतना आसान होता बंधनों को तोड़ पाना.....
बहुत सुंदर सुशीला जी....
khoobasurat bhvnapradhan post bdhai.meri nai post par aapka svagat hae.
ReplyDeleteस्वागत है आपका। कविता पसंद करने के लिए धन्यवाद।
Deleteरूह को रूह जब पाएगी
ReplyDeleteसारी सृष्टि खिल जाएगी
आत्मा परमात्मा से मिल जाएगी
परमानंद, परम् तृप्ति पा जाएगी !.... आध्यात्मिक अभिव्यक्ति
आपकी टिप्पणी नई ऊर्जा देत्ती है। आपको कविता पसंद आई, हार्दिक आभार।
Deleteआपका धन्यवाद यशवंत जी । आप ”नयी पुरानी हलचल” पर कविता पोस्ट कर रहे हैं तो आपको अवश्य ही पसंद आई होगी..:)
ReplyDeleteनिराकार प्रणय की अप्रतिम प्रस्तुति सुशिलाजी ....!!!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार सरस जी ...:))
Deleteसुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ।।
कविता को पसंद करने के लिए आभार
Deleteकाश! की जीवन में बंधन नहीं होते ----------बहुत सुन्दर भाव |
ReplyDeleteसच ! कितना अच्छा होता हम भी पंछियों की तरह फ़ुर्र से उड़ जाते !
Deleteबहरहाल ब्लॉग पर आपका स्वागत और कविता पसंद करने के लिए हार्दिक आभार।
sundar prastuti :)
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है पंछी जी ! कविता पसंद करने के लिए धन्यवाद
Deleteआओ सारे बंधन तोड़ें
ReplyDeleteबंधन पीर दे जाते हैं
सुन्दर प्रस्तुति ..बधाई
कविता पसंद करने के लिए शुक्रिया तुलिका जी !
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार उपासना जी
Deleteरूह को रूह जब पाएगी
ReplyDeleteसारी सृष्टि खिल जाएगी
दिव्य गीत कोई गाएगी
पावन प्रीत मुस्काएगी !
अच्छी कविता । मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है। धन्यवाद।
धन्यवाद प्रेम सरोवर जी।
Deleteआपके पोस्ट पर जल्द ही आऊँगी।
wah very beautiful lines...
ReplyDeleteशुक्रिया रेवा जी।
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteअरुन (arunsblog.in)
आओ सारे बंधन तोड़ेँ
ReplyDeleteबंधन पीर दे जाते हैं
आज बादलों संग उड़ें
देह वसन दे जाते हैं !
...... बहुत सुन्दर कविता ।
हार्दिक आभार सुरेन्द्रपाल वैद्य जी।
Deleteसुशीला जी पूरी कविता बहुत भावप्रवण है । ये पंक्तियाँ गहन सौन्दर्य से सिंचित हैं-
ReplyDeleteझिलमिल तारे अँगना होंगे
पिछवाड़े हरसिंगार झरेंगे
नित खुशबुओं के डेरे होंगे
सीले झोंके पुरवाई होंगे !
आपकी प्रतिक्रिया से नई ऊर्जा मिलती है । प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार!
Deleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसारगर्भित रचना । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसार गर्भित ... भावपूर्ण गहरी रचना ... काव्यमय बहती हुयी ...
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