मैं
चंदन हूँ
आग हूँ
सबने समझा राख
अंगार हूँ
बर्फ़-सी शीतलता
लावे-सी दहक हूँ
फूल पर शबनम
एक महक हूँ
सबने समझा पीर
मैं शमशीर हूँ !
सबने समझा राख
अंगार हूँ
बर्फ़-सी शीतलता
लावे-सी दहक हूँ
फूल पर शबनम
एक महक हूँ
सबने समझा पीर
मैं शमशीर हूँ !
ये तन्हाइयाँ
परेशानियाँ
दुश्वारियाँ
क्यूँ है गमनशीं
ए हमनशीं
क्या रूका है यहाँ
जो ये रूकेंगी
हो जाएँगी रूखसत
ज़रा पलकें उठा के देख
मेरी आँखों में तुम्हें
उम्मीदें दिखेंगी......
-सुशीला शिवराण
चित्र : साभार गूगल
दोनों रचनाएँ हृदयस्पर्शी हैं
ReplyDeleteउम्दा रचनाएँ हैं जो दिल को छू लेती हैं.
ReplyDeleteसुशीला जी आप की दोनों ही रचनाएँ बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी हैं......सस्नेह..
ReplyDeleteआपकी दोनों ही रचनाओं ने दिल को छुआ,बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
बहुत सुंदर सुशीला जी....
ReplyDeleteमनभावन रचनाएँ....
अनु
उम्दा रचनाएँ , सुशीला जी!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति सुशीला जी!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुंदर...सुशीला जी, उम्मीदों की झालर सजाए रखना, परेशानियाँ रुखसती की हमनशीं बनेँगीं...
ReplyDeletesundar rachnayen. gaagar mein sagar
ReplyDeleteभावनाओ की बेहतरीन अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...
दोनों रचनाएँ अति उत्तम, भावप्रण, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteसच है सभी परेशानियां एक दिन चली जाती हैं ... उम्मीद की किरण हमेशा रहनी चाहिए ... यही जीवन है ..
ReplyDeleteदोनों रचनाये बहुत ही अच्छी हैं ...
उम्मीद ही तो वह ताक़त है ...जो बड़े से बड़े तूफ़ान का हौसला भी पस्त कर देती है ....सुन्दर !
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