लीजिए मित्रो आज ताँका लेकर
हाज़िर हूँ । सबसे पहले जानकारी -
ताँका
ताँका
ताँका जापानी काव्य की कई सौ साल पुरानी काव्य शैली
है । इस शैली को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके
विषय धार्मिक या दरबारी हुआ करते थे । हाइकु का उद्भव इसी से हुआ । इसकी संरचना 5+7+5+7+7=31वर्णों की होती है।
ताँका पाँच पंक्तियों और 5+7+5+7+7= 31 वर्णों के लघु कलेवर में भावों को गुम्फित करना सतत अभ्यास और सजग शब्द
साधना से ही सम्भव है ।
इसमें यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि इसकी पहली तीन पंक्तियाँ कोई स्वतन्त्र
हाइकु है । इसका अर्थ पहली से पाँचवीं पंक्ति तक व्याप्त होता है ।
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु ' ; डॉ . हरदीप कौर सन्धु
१)
चोंच से चुग्गा
देख-देख के जीती
चूज़े सयाने
उग आए जो पंख
छोड़ चले वो नीड़ !
२)
वृक्ष मचान
कटती दोपहर
बेर, कटारे
स्वाद जहां से न्यारे
जहां जिसपे वारे !
३)
आए बदरा
झूम के नाचा मोर
नंग-धड़ंग
कागज़-कश्ती हाथ
पुलका बचपन!
४)
बरसे मेघ
साथ ले हल-बैल
चला खेत को
अन्न उगाने वाला
पेट बाँध के जीता !
-सुशीला शिवराण
बाप रे इस मुश्किल सी विधा को आपने कितनी सहजता से शब्दों में साधा है...आप तो विलक्षण प्रतिभावान हैं...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
इस विधा में लिखना आसान नहीं ... पर आपने कुछ मात्राओं में पूरा फलसफा कहा है ... बहुत खूब ..
ReplyDeletevery nice....
ReplyDeleteएक से बढ़के एक सजीव चित्र बचपन के किसानी के और ....जीवन के खटराग के चिड़िया चुग गई खेत उड़ गए चूजे बड़े हुए फुर्र . .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhaia
शनिवार, 30 जून 2012
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