"बच्चे भारत का भविष्य हैं”
यही सपना दिया था ना आपने?
बोलो चाचा?
हिन्द का बच्चा-बच्चा झूम उठा था !
खूब दीं हमें -
योजना पर योजना
घोषणा पर घोषणा
यहाँ तक कि एक दिन भी दे दिया -
"बाल-दिवस”
सपने दिए, भाषण दिए
नहीं दी तो केवल रोटी
नहीं दिया तो केवल घर
नहीं दी तो केवल शिक्षा
नहीं दिया तो केवल वर्तमान
भूखे, अनपढ़ वर्तमान से
कैसे बनता भविष्य सुनहरा?
बोलो?
आज़ादी के ६५ बरसों में
इस लंबे सफ़र में
हम भी मुसाफ़िर थे
जोहते रहे बाट
क्या दिया हमें?
बाल-श्रम का अभिशाप
बाल-विवाह की बेड़ियाँ
अनाथालयों का नर्क
कुकर्म, अनाचार, अत्याचार
असह्य वेदना, पीड़ा और आँसू
आह!
इक्कीसवीं सदी के बाशिन्दो
विकास दर बताने वालो
"India is shining" कहने वालो
देखो तुम्हारी रेशम के नीचे का घाव
इसकी रिसती मवाद तुम्हारे रेशम को सड़ा देगी
तुम्हारी कीमती रेशम
रह जाएगी बदबू का ढेर
जिसका भविष्य आलीशान सोफ़े नहीं
कचरे की ढेरी होगा!
अभी समय है चेत जाओ
इस घाव को मरहम दो
मन से सुश्रूषा करो
सहलाओ, स्नेह से भर दो
जब होगा सर्वांग स्वस्थ
तभी दमकेगी काया
सुधार लो वर्तमान
भविष्य़ स्वयं सुधर जाएगा!
-सुशीला शिवराण
चित्र : साभार - गूगल
हृदयस्पर्शी रचना सुशीला जी! Thanks for sharing !
ReplyDeleteमगर अक्सर देखा है , बाल-शोषण के, कुछ हद तक ग़रीब बच्चों के माँ-बाप भी ज़िम्मेदार हैं. मासूम बच्चे बेचारे इन्हीं हालातों का शिकार बनते हैं.
कविता के मर्म को समझने के लिए धन्यवाद अनिता जी। आप की बात से सहमत हूँ कि इनके माता-पिता ही इनको भिक्षुक और मज़दूर बनाते हैं। पर इन्हें सड़क पर जून की दोपहरी में कई बात तो नंगे पैर देख ह्रदय द्द्रवित तो हो ही जाता है!
Deleteअनीता जी सही कहा आपने कुछ हद तक ग़रीब बच्चों के माँ-बाप भी ज़िम्मेदार हैं.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति,,,सुंदर रचना,,,,,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
कविता पसंद करने के लिए ह्रदय से आभार धीरेन्द्र जी
Deleteपूरी कविता करुणा से ओतप्रोत है , साथ ही लोकतन्त्र पर भी प्रश्न है कि एक तरफ़ अन्न सड़ता है एक तरफ़ आज भी करोड़ों लिग सही ढंग का आहार नही जुटा पाते
ReplyDelete@ सहज साहित्य - कविता की करूणा को साझा करने के लिए आभार।
Deleteबहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी रचना सुशीला जी!...आभार
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