जलती धरती
आग उगलती
व्याकुल प्राणी
बूँद न मिलती
उमड़-घुमड़ के बरसो घन !
कुम्हलाए बिरवे
झर गए फूल
सूखी नदिया
उड़ रही धूल
तुम आओ तो हरखे वन !
फटी धरती
कलपे किसान
सूखी बावड़ी
पंछी हलकान
प्यासे ढोर, प्यासे जन !
गाओ मल्हार
बदरा बरसें
झूमे सृष्टि
प्रकृति हरषे
पुरवाई छू जाए तन !
-सुशीला शिवराण
चित्र - साभार गूगल
बरसात का बहुत सुन्दर भावपूर्ण आह्वान...
ReplyDeleteवाह हृदय से अब वर्षा को पुकार रहा मन ....!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...
शुभकामनायें...
भावपूर्ण रचना क्या कहने...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर..
भावविभोर करती रचना...
सच में अत्यंत सामयिक....अब तो ईश्वर तक ये रचना पहुंचे और तप्त धरती की अकुलाहट दूर हो.....
ReplyDeleteकुम्हलाए बिरवे
ReplyDeleteझर गए फूल
सूखी नदिया
उड़ रही धूल
उमड़-घुमड़ कर बरसो घन !
yehi saheeh vaqta hai baadalon k barsne kaa...
Khoob tapen tab pyas bhujhan..
sathie mere bhool na jana..
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ReplyDeleteवाह ... बहुत बढि़या।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
umda rachna hai!
ReplyDeleteबरसो घन, जल्दी बरसो...
ReplyDeleteआभार सुशीला जी!!
वाह...बहुत खूबसूरत कविता है...लगता है आपको बारिशों से बहुत प्यार है...बारिश में खोपोली जहाँ मैं रहता हूँ से बेहतर जगह क्या होगी...अभी झमाझम बारिश हो रही है सामने के पहाड़ों पर हरियाली छ गयी है और झरने चल रहे हैं...अद्भुत दृश्य है...कभी मुंबई आना हो तो बताएं.
ReplyDeleteनीरज
jaldi barso.......bahut khoob...
ReplyDeleteअब तो बरस भी जाओ घन...सुन्दर भापूर्ण पुकार..
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण वर्षा के आवाहन का ,प्यासी धरती ,जन मन का .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
शनिवार, 30 जून 2012
दीर्घायु के लिए खाद्य :
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ज्यादा देर आन लाइन रहना बोले तो टेक्नो ब्रेन बर्न आउट
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सुन्दर
ReplyDeleteक्या सुन्दर गीत.... वाह!
ReplyDeleteआ भी जाओ
लिए बिजुरिया,
सुमिर पिया को
बही कजरिया,
झरती अँखियाँ भीगा मन।
उमड़-घुमड़ के बरसो घन।
सादर।
लगता है इतने आर्द्र आवाहन का भी उनपर कोई नहीं है ...अब तो बस डांटना फटकारना ही शेष रह गया है
ReplyDeletewaah sushila ji bahut sundar aavhaan , shabdo ki sundar ladi badhai aapko .....:))
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