वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |
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Sunday, 12 August 2012

कह तो पुरुष !





कह तो पुरुष !

पाता ही रहा
मुझसे
प्यार, हौंसला
टूटन के पलों में
डूबा मुझी में
मेरी बाँहों में
भुलाए ग़म जहाँ के
उतार फेंकी हताशा की केंचुली
मेरे प्रेम-सागर में
डूबा उतराया
ले के नया विश्‍वास
मेरे समर्पण में
पाया संबल
लेके मुझे पार्श में
हुआ सदा गर्वित
उन मादक पलों की स्मृति
मैंने कोख में सहेज
अपने खूं से सींच
दिया तुम्हें अतुल्य उपहार
बसाया तुम्हारा घर-संसार
महकाया बगिया-सा
दिए तुम्हारे जीवन को अर्थ
फिर भी तू नाशुक्रा
मेरे हर त्याग को
कहता रहा अधिकार
करता रहा वंचित
मुझे मेरे ही हक से
अर्धांगिनी नहीं
कहा अबला
जिस स्तंभ पर टिकी गृहस्थी
कहा उसी को आश्रित
पुरुष है !
तू ही गढ़ेगा परिभाषाएँ
जानता है
मानता नहीं
बनाए रखने को अपना अहं
कहता है
अबला, आश्रिता
मुझ सबला को !

-
सुशीला शिवराण (श्योराण)