आती है नव-बंसत लाती है प्रीत
फ़िर छोड़ दामन रूलाती है प्रीत
फ़िर छोड़ दामन रूलाती है प्रीत
खिला मन-उपवन लहकाती है प्रीत
गाता है दिल, मन बहकाती है प्रीत
गुज़रते दिन-रात यूँ अब ख्वाबों में
‘वही’ खयालों में, भटकाती है प्रीत
करें गुफ़्तगू अगर तू पहलू में हो
खुदी से कह, यूँ भरमाती है प्रीत
बातों से भरती पिटारा दिन भर
मिले उससे तो शरमाती है प्रीत
करें गुफ़्तगू अगर तू पहलू में हो
खुदी से कह, यूँ भरमाती है प्रीत
बातों से भरती पिटारा दिन भर
मिले उससे तो शरमाती है प्रीत
पाकर उसे ज्यूं दुनिया पा लेती है
खूब मन ही मन इठलाती है प्रीत
नज़दीकियाँ क्यूं ले जाती हैं दूर
ये वो तो नहीं, अकुलाती है प्रीत
न वो लगे अपना न जाए दिल से
दिल में खलिश, तड़पाती है प्रीत
-सुशीला श्योराण
ना वो लगे अपना, ना छूटता है
ReplyDeleteखलिश दिल में तड़पाती है प्रीत... गहरी तपिश है आपकी लेखनी में
आपकी प्रशंसा मेरे लिए बहुत मायने रखती है। तहे दिल से शुक्रिया।
Deleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबातों से भरती पिटारा दिन भर
मिले उससे तो शरमाती है प्रीत
..लजाती भी है प्रीत..
जी विद्या जी । लजाती भी है, घबराती भी है और अपने प्रिय से लुकती (छिपती) भी है प्रीत ।
Deleteआभार
बहुत अच्छी प्रस्तुति,सुंदर लेखनी ,बेहतरीन पोस्ट....
ReplyDeletenew post...वाह रे मंहगाई...
This comment has been removed by the author.
Deleteमौसम भी क्या गुल खिलाता है .. सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रिया संगीता स्वरुप ( गीत )जी।
Deleteवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सदा जी।
Deletebahut sunder kavita...............
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteगुज़रते दिन-रात यूँ अब ख्वाबों में
ReplyDelete‘वही’ खयालों में, भटकाती है प्रीत
करें गुफ़्तगू अगर तू पहलू में हो
खुदी से कह, यूँ भरमाती है प्रीत-----
bahut hi khubsurat lafz hain -------
नज़दीकियाँ क्यूं ले जाती हैं दूर
ReplyDeleteये वो तो नहीं, अकुलाती है प्रीत
न वो लगे अपना न जाए दिल से
दिल में खलिश, तड़पाती है प्रीत
behad khoobsoorat bhav .....ak achhi gazal pr sadar abhar Sushila ji.
हार्दिक आभार Naveen Mani Tripathi जी।
Deleteबहुत सुन्दर भावमयी रचना..आभार...
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी।
Deleteप्रीत का व्यक्तिकरण करके बहुत सी बातें सहज कह दी गई हैं जिन्हें कहना अन्यथा कठिन होता है. भाव संप्रेषण समर्थ सुंदर कविता.
ReplyDeleteआप की बहुमूल्य टिप्प्णी के लिए हार्दिक आभार।
Deleteबहुत प्यारा लिखा है मैम।
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद यशवंत जी।
Deleteआती है नव-बंसत लाती है प्रीत
ReplyDeleteफ़िर छोड़ दामन रूलाती है प्रीत ...
प्रीत के ये दोनों ही रूप हैं जो समय बदल बदल के आते हैं .... सुन्दर लिखा है ...
आप पहली बार मेरे ब्लोग पर आए हैं स्वागत है आपका।
Deleteआपको मेरी गज़ल पसंद आई शुक्रिया।
वाह! वाह! बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया हबीब साहब।
Deleteाआपका तहे दिल से शुक्रिया हबीब साहब।
Deleteआदरणीया सुशीला जी आपके ब्लॉग पर आना सुखद रहा |आपकी रचना अच्छी लगी आभार |
ReplyDeleteतुषार जी आप मेरे ब्लोग पर आए और तारीफ़ कर हौंसला अफ़ज़ाई की आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।
Deleteभावमयी रचना..आभार...
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी। यूँ ही साथ बना रहे।
Deleteआपकी भावमय प्रीत की सुन्दर
ReplyDeleteप्रस्तुति से मन भाव विभोर हो गया है,सुशीला जी.
प्रीत के रंग निराले हैं.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
आपको मेरी गज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया।
Deleteजी ज़रूर।
आदरणीया सुशीला जी आपके ब्लॉग पर आना सुखद रहा |आपकी रचना अच्छी लगी
ReplyDeleteकुश्वंश जी आपका मेरे ब्लोग पर स्वागत है। आपको गज़ल अच्छी लगी शुक्रिया।
Deletepreet par itni komalkaant rachna baanch kar aanand aya ....badhaai !
ReplyDeleteअलबेला जी आपकॊ अपने ब्लोग पर पाकर अत्यंत हर्ष का अनुभव हो रहा है। आपको गज़ल पसंद आई और आपने तारीफ़ भी की हमारी खुशनसीबी।
Deleteगुज़रते दिन-रात यूँ अब ख्वाबों में
ReplyDelete‘वही’ खयालों में, भटकाती है प्रीत
bahut hi sundarta se sabdon me piroya hai aapne prit ko ..bahut si sundar krati !!!
शुक्रिया अशोक जी!
Deleteमेरे ब्लॉग पर आप आयीं इसके लिए आभार आपका.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग का तरेपन वाँ फालोअर बनते हुए मुझे खुशी हो रही है.
आना जाना बनाये रखियेगा,सुशीला जी.
आप के ब्लोग पर आना यानि मंदिर आना। वही भक्तिभाव और पावन अनुभूति होती है। प्रभु-कृपा का प्रसाद लेने तो आते ही रहना होगा।
Deleteसादर।
नज़दीकियाँ क्यूं ले जाती हैं दूर
ReplyDeleteये वो तो नहीं, अकुलाती है प्रीत
प्रेमपुर्ण कविता ....
आभार अरूण जी
Deleteबहुत संदर प्स्तुति । मेरे नए पोस्ट " डॉ.ध्रमवीर भारती" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteप्रशंसा के लिए आभार आपका ।
Deleteडॉ.ध्रमवीर भारती मेरे भी पसंदीदा साहित्यकार हैं। अवश्य पढूँगी उनको।
प्रेमपुर्ण अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार............
ReplyDeleteतारीफ़ के लिए शुक्रिया।
Deleteवाह बहुत ही सुन्दर रचना। बहुत अच्छा लगा पढ़कर।
ReplyDeleteसुशीला जी आप किस साल मे पिलानी थी? मुझे मालूम नही क्यों लगता है कि मैने पहले भी आपको देखा है।
मैंने जुलाई २००४ से अप्रैल २००७ तक विद्यानिकेतन बिड़ला पब्लिक स्कूल में पढाया है। कैम्पस में ही स्टाफ़ क्वार्टरस में रहती थी।
Deleteगज़ल पसंद आई शुक्रिया सुनीता जी।
पाकर उसे ज्यूं दुनिया पा लेती है
ReplyDeleteखूब मन ही मन इठलाती है प्रीत
KHUBSHURAT PREET:))
शुक्रिया आपका
Deleteखिला मन-उपवन लहकाती है प्रीत
ReplyDeleteगाता है दिल, मन बहकाती है प्रीत
बहुत खूब...बधाई स्वीकारें
नीरज
आपको अगल पसंद आई, शुक्रिया नीरज जी।
Deleteन वो लगे अपना न जाए दिल से
ReplyDeleteदिल में खलिश, तड़पाती है प्रीत
....बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...हर् पंक्ति दिल को छू जाती है..बधाई
तारीफ़ के लिए तहे दिल से शुक्रिया कैलाश जी !
Deleteन वो लगे अपना न जाए दिल से
ReplyDeleteदिल में खलिश, तड़पाती है प्रीत
badhai ke gantantr diwas pr hardik shubh kamanayen.
आपको भी गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएँ नवीन जी।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन ...हमारे ब्लोग पर आपका स्वागत है
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