वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |

Saturday, 21 January 2012

प्रीत






आती है नव-बंसत लाती है प्रीत
फ़िर छोड़ दामन रूलाती है प्रीत

खिला मन-उपवन लहकाती है प्रीत
गाता है दिल, मन बहकाती है प्रीत

गुज़रते दिन-रात यूँ अब ख्वाबों में
वही खयालों में, भटकाती है प्रीत

करें गुफ़्तगू अगर तू पहलू में हो
खुदी से कह, यूँ भरमाती है प्रीत

बातों से भरती पिटारा दिन भर
मिले उससे तो शरमाती है प्रीत

पाकर उसे ज्यूं दुनिया पा लेती है 
खूब मन ही मन इठलाती है प्रीत

नज़दीकियाँ क्यूं ले जाती हैं दूर
ये वो तो नहीं, अकुलाती है प्रीत

न वो लगे अपना न जाए दिल से 
दिल में खलिश, तड़पाती है प्रीत


-सुशीला श्योराण


57 comments:

  1. ना वो लगे अपना, ना छूटता है
    खलिश दिल में तड़पाती है प्रीत... गहरी तपिश है आपकी लेखनी में

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी प्रशंसा मेरे लिए बहुत मायने रखती है। तहे दिल से शुक्रिया।

      Delete
  2. बहुत सुन्दर...
    बातों से भरती पिटारा दिन भर
    मिले उससे तो शरमाती है प्रीत
    ..लजाती भी है प्रीत..

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी विद्या जी । लजाती भी है, घबराती भी है और अपने प्रिय से लुकती (छिपती) भी है प्रीत ।

      आभार

      Delete
  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति,सुंदर लेखनी ,बेहतरीन पोस्ट....
    new post...वाह रे मंहगाई...

    ReplyDelete
    Replies
    1. This comment has been removed by the author.

      Delete
  4. मौसम भी क्या गुल खिलाता है .. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया संगीता स्वरुप ( गीत )जी।

      Delete
  5. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार सदा जी।

      Delete
  6. bahut sunder kavita...............

    ReplyDelete
  7. गुज़रते दिन-रात यूँ अब ख्वाबों में
    ‘वही’ खयालों में, भटकाती है प्रीत

    करें गुफ़्तगू अगर तू पहलू में हो
    खुदी से कह, यूँ भरमाती है प्रीत-----
    bahut hi khubsurat lafz hain -------

    ReplyDelete
  8. नज़दीकियाँ क्यूं ले जाती हैं दूर
    ये वो तो नहीं, अकुलाती है प्रीत

    न वो लगे अपना न जाए दिल से
    दिल में खलिश, तड़पाती है प्रीत
    behad khoobsoorat bhav .....ak achhi gazal pr sadar abhar Sushila ji.

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार Naveen Mani Tripathi जी।

      Delete
  9. बहुत सुन्दर भावमयी रचना..आभार...

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया संजय जी।

      Delete
  10. प्रीत का व्यक्तिकरण करके बहुत सी बातें सहज कह दी गई हैं जिन्हें कहना अन्यथा कठिन होता है. भाव संप्रेषण समर्थ सुंदर कविता.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप की बहुमूल्य टिप्प्णी के लिए हार्दिक आभार।

      Delete
  11. बहुत प्यारा लिखा है मैम।

    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद यशवंत जी।

      Delete
  12. आती है नव-बंसत लाती है प्रीत
    फ़िर छोड़ दामन रूलाती है प्रीत ...

    प्रीत के ये दोनों ही रूप हैं जो समय बदल बदल के आते हैं .... सुन्दर लिखा है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप पहली बार मेरे ब्लोग पर आए हैं स्वागत है आपका।
      आपको मेरी गज़ल पसंद आई शुक्रिया।

      Delete
  13. वाह! वाह! बहुत सुन्दर..

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहे दिल से शुक्रिया हबीब साहब।

      Delete
    2. ाआपका तहे दिल से शुक्रिया हबीब साहब।

      Delete
  14. आदरणीया सुशीला जी आपके ब्लॉग पर आना सुखद रहा |आपकी रचना अच्छी लगी आभार |

    ReplyDelete
    Replies
    1. तुषार जी आप मेरे ब्लोग पर आए और तारीफ़ कर हौंसला अफ़ज़ाई की आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।

      Delete
  15. भावमयी रचना..आभार...

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद संगीता जी। यूँ ही साथ बना रहे।

      Delete
  16. आपकी भावमय प्रीत की सुन्दर
    प्रस्तुति से मन भाव विभोर हो गया है,सुशीला जी.
    प्रीत के रंग निराले हैं.
    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपको मेरी गज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया।
      जी ज़रूर।

      Delete
  17. आदरणीया सुशीला जी आपके ब्लॉग पर आना सुखद रहा |आपकी रचना अच्छी लगी

    ReplyDelete
    Replies
    1. कुश्वंश जी आपका मेरे ब्लोग पर स्वागत है। आपको गज़ल अच्छी लगी शुक्रिया।

      Delete
  18. preet par itni komalkaant rachna baanch kar aanand aya ....badhaai !

    ReplyDelete
    Replies
    1. अलबेला जी आपकॊ अपने ब्लोग पर पाकर अत्यंत हर्ष का अनुभव हो रहा है। आपको गज़ल पसंद आई और आपने तारीफ़ भी की हमारी खुशनसीबी।

      Delete
  19. गुज़रते दिन-रात यूँ अब ख्वाबों में
    ‘वही’ खयालों में, भटकाती है प्रीत
    bahut hi sundarta se sabdon me piroya hai aapne prit ko ..bahut si sundar krati !!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया अशोक जी!

      Delete
  20. मेरे ब्लॉग पर आप आयीं इसके लिए आभार आपका.
    आपके ब्लॉग का तरेपन वाँ फालोअर बनते हुए मुझे खुशी हो रही है.
    आना जाना बनाये रखियेगा,सुशीला जी.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप के ब्लोग पर आना यानि मंदिर आना। वही भक्तिभाव और पावन अनुभूति होती है। प्रभु-कृपा का प्रसाद लेने तो आते ही रहना होगा।

      सादर।

      Delete
  21. नज़दीकियाँ क्यूं ले जाती हैं दूर
    ये वो तो नहीं, अकुलाती है प्रीत
    प्रेमपुर्ण कविता ....

    ReplyDelete
  22. बहुत संदर प्स्तुति । मेरे नए पोस्ट " डॉ.ध्रमवीर भारती" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रशंसा के लिए आभार आपका ।

      डॉ.ध्रमवीर भारती मेरे भी पसंदीदा साहित्यकार हैं। अवश्य पढूँगी उनको।

      Delete
  23. प्रेमपुर्ण अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार............

    ReplyDelete
    Replies
    1. तारीफ़ के लिए शुक्रिया।

      Delete
  24. वाह बहुत ही सुन्दर रचना। बहुत अच्छा लगा पढ़कर।
    सुशीला जी आप किस साल मे पिलानी थी? मुझे मालूम नही क्यों लगता है कि मैने पहले भी आपको देखा है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मैंने जुलाई २००४ से अप्रैल २००७ तक विद्यानिकेतन बिड़ला पब्लिक स्कूल में पढाया है। कैम्पस में ही स्टाफ़ क्वार्टरस में रहती थी।

      गज़ल पसंद आई शुक्रिया सुनीता जी।

      Delete
  25. पाकर उसे ज्यूं दुनिया पा लेती है
    खूब मन ही मन इठलाती है प्रीत

    KHUBSHURAT PREET:))

    ReplyDelete
  26. खिला मन-उपवन लहकाती है प्रीत
    गाता है दिल, मन बहकाती है प्रीत

    बहुत खूब...बधाई स्वीकारें

    नीरज

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपको अगल पसंद आई, शुक्रिया नीरज जी।

      Delete
  27. न वो लगे अपना न जाए दिल से
    दिल में खलिश, तड़पाती है प्रीत

    ....बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...हर् पंक्ति दिल को छू जाती है..बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. तारीफ़ के लिए तहे दिल से शुक्रिया कैलाश जी !

      Delete
  28. न वो लगे अपना न जाए दिल से
    दिल में खलिश, तड़पाती है प्रीत
    badhai ke gantantr diwas pr hardik shubh kamanayen.

    ReplyDelete
  29. आपको भी गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएँ नवीन जी।

    ReplyDelete
  30. बहुत बेहतरीन ...हमारे ब्लोग पर आपका स्वागत है

    ReplyDelete