वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |
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Thursday, 2 June 2011

सिक्के के दो पहलू


सिक्के के दो पहलू 

बात उन दिनों की है जब मैं सन 1993 में तीसरी कक्षा को गणित पढ़ाया करती थी | अभिभावकों के साथ मेरे अनुभव कुछ यूँ रहे - 

पहला पहलू 

शिक्षिका विद्यार्थियों से -

पिछले एक सप्ताह से आप 
पहाड़े याद नहीं कर रहे हो 
केवल हर दिन 
समय व्यर्थ गंवा रहे हो !
यदि आज भी आप
पहाड़े याद नहीं करोगे
तो सज़ा जरूर पाओगे |

दूसरे दिन एक बच्ची की मम्मी का नोट -


मेरी बेटी बहुत छोटी है 
सज़ा की बात कर मत डराइये
समय के साथ सीख जाएगी 
थोड़ा सब्र रखिये 
कुछ अंक कम आयेंगे 
कौन याद रखता है ?
सब भूल जायेंगे !
मेरी बात पर गौर कीजिये 
मेरी बेटी को सज़ा मत दीजिये !

शिक्षिका किम्कर्तव्य-विमूढ़ है
क्या नहीं ये समस्या गूढ़ है ?

दूसरा पहलू 

एक मम्मी शिक्षिका से -

क्या U .T . के पेपर चेक हो गए ?
ज़रा मेरी बेटी के नंबर तो बताइये !

शिक्षिका - 

आपकी बेटी ने बहुत ही अच्छा किया है
पूर्णांक में से बस एक अंक कम मिला है !

                                        यह सुनते ही मम्मी के चहरे का रंग बदल गया 
                                         खुशनुमा लालिमा की जगह पीलापन छा गया !

बेटी से मुखातिब होकर बोलीं  - 

बच्चे कितनी अच्छी तरह से तुम्हारी तैयारी करवाई
फिर भी तुम गलती कर,  एक नंबर कम ले ही आई 
scholar badge  की उम्मीद पर पानी फिर गया 
यह सोचकर मेरा तो जैसे कलेजा ही बैठ गया !

                                         यह सुन, देखकर शिक्षिका विचलित है !
                            बच्चों का बचपन क्या नहीं हो रहा कुंठित है?