वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |
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Saturday, 22 September 2012

तुम हो !



तुम हो !
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तुम नहीं हो
जानता है दिल
मानता नहीं
क्योंकि
तुम्हारा प्रेम
आज भी सींचता है
मन की प्यास को
जब भी अकेली होती हूँफट पड़ता है यादों का बादलडूबने लगती हूँ मैं
नीचे और नीचेयकायक तुम
आ बैठते हो पास
थाम लेते हो 
मज़बूत बाँहों सेदीप्‍त हो उठता है
तुम्हारा चेहरा
प्रेम की लौ से
मेरी प्रीत
उस लौ में जलकर
हो जाती है फ़ीनिक्स !

कौन कहता है
दुनिया से जाने वाले
नहीं लौटते
ज़रूर लौटते हैं
ज़िस्मों के पार
गर रिश्‍ते रूहानी हों
रूहानी हो पीर !
-
सुशीला

चित्र : साभार गूगल