वीथी

हमारी भावनाएँ शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं।अपनी कविताओं के माध्यम से मैंने अपनी भावनाओं, अपने अहसासों और अपनी विचार-धारा को अभिव्यक्ति दी है| वीथी में आपका स्वागत है |
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Monday, 11 June 2012

उमड़-घुमड़ कर बरसो घन



जलती धरती
आग उगलती
व्याकुल प्राणी
बूँद मिलती
उमड़-घुमड़ के बरसो घन !

कुम्हलाए बिरवे
झर गए फूल
सूखी नदिया
उड़ रही धूल
तुम आओ तो हरखे वन !

फटी धरती
कलपे किसान
सूखी बावड़ी
पंछी हलकान
प्यासे ढोर, प्यासे जन !

गाओ मल्हार
बदरा बरसें
झूमे सृष्‍टि
प्रकृति हरषे
पुरवाई छू जाए तन !





-सुशीला शिवराण

चित्र - साभार गूगल