जलती धरती
आग उगलती
व्याकुल प्राणी
बूँद न मिलती
उमड़-घुमड़ के बरसो घन !
कुम्हलाए बिरवे
झर गए फूल
सूखी नदिया
उड़ रही धूल
तुम आओ तो हरखे वन !
फटी धरती
कलपे किसान
सूखी बावड़ी
पंछी हलकान
प्यासे ढोर, प्यासे जन !
गाओ मल्हार
बदरा बरसें
झूमे सृष्टि
प्रकृति हरषे
पुरवाई छू जाए तन !
-सुशीला शिवराण
चित्र - साभार गूगल