सुन कुदरत
पा ली क्या
इंसानी फ़ितरत !
रूत बसंत
सावन की फ़ुहार
हाड़ गलाए
पौष-सी बयार
भाग ली धूप
ओलों की बौछार
पीली सरसों
करे मलाल
दहकते टेसू
हुए हलाल।
कहे प्रकृति -
सुन मानव !
सब तेरी करतूत
दिया प्रदूषण
रोग भीषण
रूग्ण मेरी काया
कैसे चलूँ
सधी चाल
किया तूने बेहाल।
अब भी संभल
कर जतन
उगा दरख़्त
कानून सख़्त
गंगा दूषित
यमुना गंदली
मैं ऊसांसी
हुई रूआंसी
कैसी ये आफ़त
जी की साँसत
किया हताहत
दे कुछ राहत
अब भी संभल
सँवार कल।
- शील
चित्र : साभार गूगल